Description
डॉ- राजेन्द्र प्रसाद पाण्डेय की अनेक साहित्यकारों के साथ रचनात्मक तथा आलोचनात्मक लेऽन पर जीवंत चर्चा होती थी। विद्याप्रेमी होने के कारण प्रतिष्ठित साहित्यकारों से मिलने तथा उनके लेखन पर चर्चा करने के लिए वे स्वयं भी जाते थे।
काशी की पांडित्य परंपरा से जुड़े होने के कारण अनेक विषयों के विद्वानों से संपर्क रखना तथा उनके साहचर्य में आना उनका स्वाभाविक कर्म था। अपनी उम्र से लगभग 30 वर्ष बड़े और उतनी ही उम्र के कनिष्ठों से भी जीवंत संपर्क रखते थे।
‘नदिया नाव संजोग’ संस्मरण के साथ ही समीक्षा पुस्तक भी है। लेखक ने रचनाकारों के साथ अपनी स्मृतियों को सहेजते हुए रचनाओं पर टिप्पणी भी की है। अपने मंतव्य को भी रखा है। अपने समय के कई रचनाकारों के साथ दो-दो हाथ भी किया है। इस संग्रह में जितने लेखक हैं उनकी कृतियों पर चर्चा करते हुए हर सजग समीक्षक की तरह विचार के सूत्र दिए गए हैं।
साहित्य की विकास यात्र को इन संस्मरणों के सूत्रों से टटोला जा सकता है तथा उसके महत्त्वपूर्ण बिंदुओं को विचारार्थ रखा जा सकता है। हिंदी साहित्य के आचार्यों तथा शोधार्थियों द्वारा निश्चय ही इस पुस्तक का स्वागत किया जाएगा।