Description
इस पुस्तक के साक्षात्कार विगत एक दशक के साहित्यिक, सांस्कृतिक और सामाजिक परिदृश्य पर उभरे हुए प्रश्नों तथा विवादों से जुड़े हुए हैं। इन साक्षात्कारों में विमर्श का दायरा व्यापक है जिसमें एक ओर कविता के स्वभाव, हिंदी कविता की परंपरा, समकालीन कविता की स्थिति और नागार्जुन की कविता का महत्व जैसे प्रसंगों पर बेबाक बातचीत है तो दूसरी ओर समकालीन हिंदी आलोचना की स्थिति, उसकी समस्याओं की पहचान तथा संभावनाओं की ओर संकेत के साथ-साथ आलोचना से विचार के अंतरंग संबंध् की गंभीर चिंता भी है।