प्रेम में असफलता ने उनके हृदय को इतना खोखला किया कि वह एक कुआं बन गया और फिर इसमें करुणा भर गई-पूरी मानव जाति, नहीं, पूरी सृष्टि के लिए। तभी तो उनके शब्द इतने चमत्कारी और समर्थ लगते हैं, जैसे वे शब्द नहीं, एक-एक आत्मा हों और हमारी ओर निहार रहे हों। इतने प्राणवान शब्द कि हर शब्द अपने अंदर एक ब्रह्मांड समेटे हो जैसे। और वह, जिसकी आत्मा पूर्णतः निष्कलुष एवं निष्पाप हो जाती है, वही समर्थ हो जाता है शरीर के सौंदर्य को देख पाने में, और तब उसके लिए शरीर में छिपाने जैसा न कुछ रह जाता है, न ही कुछ दिखाने जैसा। मानव शरीर भी उसके लिए सृष्टि के अन्य जीवों के शरीर की तरह ही हो जाता है-अपने स्वरूप में सुंदर पवित्र!
-विजयलक्ष्मी शर्मा
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Tatvadarshi : Kahlil Gibran
₹125.00 ₹106.25
ISBN: 978-81-88588-14-5
Edition: 2008
Pages: 124
Language: Hindi
Format: Hardback
Author : Dr. Vijay Laxmi Sharma
Category: Poems