बुक्स हिंदी 

आज की किताब

सुप्रसिद्ध लेखिका मधु कांकरिया के कहानी संग्रह  “…और अंत में ईशु” से एक कहानी ‘कुल्ला’

पहली मर्तबा जब उसने मर्द की आँखों में झाँका तो उसे चाँद-सितारे दिखाई दिए। उस रात उसने अपने मर्द से कविता की भाषा में बात की। शायरियों में जवाब दिया। और जब दूसरी दफा उसने मर्द को जाना, उसकी दो दिन बढ़ी दाढ़ी की महक ली तो उसकी उनींदी आँखें थोड़ी चौड़ी हुईं। आत्मा में […]

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सरयू से गंगा

कमलाकांत त्रिपाठी के उपन्यास ‘सरयू से गंगा’ का अंश …प्लासी की परिणति में कंपनी के पिट्ठू मीर जाफर को बंगाल की गद्दी मिलने के बाद तो इन किसानों-बुनकरों की फरियाद सुननेवाला भी कोई नहीं रहा। कंपनी के कारकुनों का मन इतना बढ़ गया कि वे कर-वसूली और कानून-व्यवस्था के काम में लगे नाज़िमों और फौज़दारों

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उड़ानें ऊंची-ऊंची तथा अन्य कहानियां

कब तक? स्त्री-विमर्श पर अनेक चर्चाएं, बहस, नारे व आलेख जोर पकड़ रहे हैं पर उनकी मदद में परिवार, समाज की भागीदारी बहुत कम है। अपने ही परिवार का झूठा गर्व, ब्राह्मणत्व का अहं याद आते ही कामिनी का रोष से चेहरा सुर्ख हो जाता है। स्नेह का स्निग्ध गोरा चेहरा बहुत सारे प्रश्न ले

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कथा की अफवाह

पंच परमेश्वर के जूते पंच परमेश्वर के जूते उतार देखा, एक पैर का पिछला तला ज्यादा घिसा मिला, तो दूसरे पैर का आगे वाला हिस्सा। पंच परमेश्वर के जूते फट रहे थे। उन्हें लगा, जूतों के साथ न्याय नहीं हो रहा है। उन्होंने पाया कि सारी गड़बड़ी न्याय के रास्ते पर चलने के ढंग में

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अत्र कुशलं तत्रास्तु

रामविलास शर्मा तथा अमृतलाल नागर के पत्र बंबई11.3.45 प्रिय विलास,रमेश से भेंट हुई। निरालाजी के स्वास्थ्य के सम्बन्ध में मैंने उन्हें आंखों देखी, कानों सुनी बता दी। उन्हें डॉक्टर को दिखाने का प्रबन्ध तुमने डॉ. सिंह से मिलकर किया होगा। या फिलहाल तुम इसकी जरूरत ही नहीं समझते! जैसा हो खुलासा लिखना। आप लोगों की

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मुक्ति-द्वार के सामने (कविता-संग्रह): प्रताप सहगल

बाज़ार से हम बच नहीं सकते बाज़ार से हम बच नहीं सकते और जो राहें निकालीं पूर्वजों ने राहें जो मंगल भरी हैं उन अलक्षित रास्तों से हट नहीं सकते बाज़ार से भी बच नहीं सकते। डाल पर बैठे कला का टोप पहने झूलती है डाल इस छोर से उस छोर तक साधना है संतुलन

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संसार के प्रसिद्ध व्यक्तियों के प्रेम-पत्र

श्री अरविंद का पत्र मृणालिनी के नाम (श्री अरविंद: बंगाल-विभाजन के समय का सुप्रसिद्ध क्रांतिकारी, जो बाद में राजनीति से ‘संन्यास’ लेकर धर्म की शरण में चला गया…) प्रिये, याद रखो, तुम्हारा विवाह एक अजीब व असाधारण आदमी से हुआ है। उसे पागल भी कहा जा सकता है। लेकिन जब एक ‘पागल’ आदमी अपने मनचाहे

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कागज की नाव (व्यास सम्मान से पुरस्कृत कृति)

…महलका अभी सोकर उठी थी कि उसने देखा मम्मी और पापा उसके घर के आंगन में खड़े हैं। वह ताज्जुब से आगे बढ़ी। सलाम कर उन्हें अपने कमरे की तरफ ले जाने लगी तो अमजद ने कहा, “पहले जहूर साहब से मिल लूं फिर आता हूं।” महलका के चेहरे का रंग यह सुनकर उड़्‌ गया

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हिंदी व्यंग्य की धाार्मिक पुस्तक: हरिशंकर परसाई

इंस्पेक्टर मातादीन चहुंओर समाया : नरेन्द्र कोहली परसाई जी की रचनाएं मैंने ‘धर्मयुग’ में अपने उस वय में पढ़नी आरंभ की थी, जब न तो साहित्य की उतनी समझ थी और न ही जीवन का अनुभव। मैं स्वभाव से पाठक था, इसलिए पढ़ता था। जिस रचना में रस मिलता था, उसे पढ़ जाता था। पढ़ते-पढ़ते

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