Description
आधुनिक भारत की संस्कृति एक विकसित शतदल कमल के समान है, जिसका एक-एक दल एक-एक प्रान्तीय भाषा और उसकी साहित्य-संस्कृति हैं किसी एक को मिटा देने से उस कमल की शोभा ही नष्ट हो जाएगी। हम चाहते हैं कि भारत की सब प्रान्तीय बोलियाँ, जिनमें सुन्दर साहित्यसृष्टि हुई है, अपने-अपने घर में (प्रान्त में) रानी बनकर रहें, प्रान्त के जन-गण की हार्दिक चिन्ता की प्रकाश भूमिस्वरूप कविता की भाषा होकर रहें और आधुनिक भाषाओें के हार की मध्य मणि हिन्दी भारत भारती होकर विराजती रहे।
-रवीन्द्रनाथ टैगोर