Description
दुर्योधन को युद्ध से विरत करने के लिए पिता धृतराष्ट्र, पितामह भीष्म, गुरु द्रोणाचार्य तथा माता गांधारी सभी ने भरसक प्रयत्न किया किन्तु उसने किसी की नहीं मानी। श्रीकृष्ण नीति-कुशल और महाभारतकार के शब्दों में ‘वदतां श्रेष्ठतमः’ थे। पाण्डवों ने परस्पर परामर्श करके उन्हीं को अपना प्रतिनिधि बनाकर कौरवों की सभा में भेजा। इस सभा में दिया गया श्रीकृष्ण का भाषण किसी को भी प्रभावित करने के लिए अत्यन्त उत्तम था, किन्तु दुर्योधन पर उसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा और श्रीकृष्ण अपनी ओर से तो ‘अब कुरुक्षेत्र के मैदान में ही इसका निर्ण होगा’ कहकर लौट आये। इसके बाद युद्ध की तैयारियां होने लगीं। परिणामस्वरूप जो कुछ हुआ सब जानते हैं।
(इस पुस्तक के ‘गांधी जी के शान्ति-प्रयासों की असफलता के कारण’ अध्याय से)
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