-15%

Bundelkhand : Sanskriti Aur Sahitya

490.00 416.50

ISBN: 978-93-85054-47-1
Edition: 2016
Pages: 280
Language: Hindi
Format: Hardback

Author : Dr. Rameshwar Prasad Pandey

Compare
Category:

Description

भारत की सांस्कृतिक समृद्धि विश्वविख्यात है। शताब्दियों से यह देश मनुष्यता का मंदिर रहा है। सभ्यता की लिपि पढ़ता और संस्कृति के अभिनव रूपाकार गढ़ता भारत विविधता के वैभव का उदात्त उदाहरण है। इसका हर अंचल या क्षेत्र जाने कितनी विशेषताएं समेटे हुए है। हरेक का अपना रंग है और अपना अंतरंग। साहित्य, संस्कृति और कला-प्रेमियों ने गहन अनुसंधान कर इस मूल्यवान धरोहर को संजोया है।
बुंदेलखंड: संस्कृति और साहित्य एक महत्त्वपूर्ण पुस्तक है। इसके लेखक डॉ- रामेश्वर प्रसाद पांडेय ने अनुसंधान, ज्ञान और विश्लेषण की ऊर्जा से पुस्तक का लेखन किया है। सर्वोपरि है बुंदेलखंड के प्रति उनका प्रेम। बिना सघन आत्मीयता के ऐसे विषयों पर स्थूल तरीके से तो लिखा जा सकता है लेकिन ‘अंचल की आत्मा’ में झांकना संभव नहीं है।
‘लेखकीय’ में लेखक ने ठीक कहा है, ‘प्रस्तुत कृति में बुंदेलखंड की समृद्ध बहुआयामी संस्कृति का विवेचन जहां विलुप्तप्राय और प्रचलित परंपराओं का दिग्दर्शन कराएगा वहीं दूसरी ओर बुंदेलखंड की भाषा में प्रचलित चुटीले मुहावरे, लोकोक्तियों, व्यंग्योक्तियों और कटूक्तियों का समावेश भी है जो गहरे तक उतरकर मन को आीांदित कर देते हैं।’
पुस्तक इन शीर्षकों में सामग्री प्रस्तुत करती हैµसंक्षिप्त इतिहास, लोक संस्कृति, संस्कार, तीज-त्योहार, मनोरंजन की विधाएं, कुछ याद रहा कुछ भूल गए तथा लोकोक्तियां, मुहावरे एवं कहावतें। जो पाठक बुंदेलखंड के विषय में जानना चाहते हैं उनके लिए यह जरूरी किताब है। इसे पढ़कर अनेक जिज्ञासाओं का शमन होता है।
‘संक्षिप्त इतिहास’ अतीत का सार संक्षेप है। ‘इत चंबल उत नर्मदा इत जमना उत टोंस’µइन चार नदियों के बीच का भूभाग बुंदेलखंड है, जिसे लोक व्यवहार, परंपराएं, भाषा और सांस्कृतिक परिदृश्य विशेष बनाते हैं। लेखक ने गोंड़ी संस्कृति को यहां की लोक संस्कृति का आधार माना है। भाग्य, विवाह, जीवनचर्या, विश्वास, परंपरा, आजीविका, भोजन, मनोरंजन आदि का बुंदेलखंडी लोक संस्कृति के संदर्भ में विवेचन करते हुए डॉ- रामेश्वर प्रसाद पांडेय ने विकास के बड़े परिप्रेक्ष्य में इसे देखा है।
सनातन धर्म को मानने वाले भारतीयों का पूरा जीवन सोलह संस्कारों में संपन्न होता है। गर्भाधान से अंतिम संस्कार तक क्रमबद्ध रहकर समाज में नियम का पालन होता है। लेखक ने शास्त्रवणिर््ात इन संस्कारों का वर्णन करते हुए बुंदेलखंडी प्रभाव को विस्मृत नहीं किया है। मुख्य संस्कारों के भीतर निहित उपसंस्कारों को भी रेखांकित किया गया है।
‘तीज-त्योहार’ के बहाने लेखक ने भारतीय समाज के प्राणतत्त्व की व्याख्या कर दी है। इन्हीं में बसते और विहंसते हैं लोग। रक्षाबंधन, दीपावली, देवउठनी एकादशी, कार्तिक स्नान, संक्रांत, होली, नौरता, अकती की जानकारी के साथ अवसरानुकूल लोकगीत भी उद्धृत हैं। इस क्षेत्र में ईसुरी की फागों से कौन अपरिचित है। उमंग, विछोह, मस्ती, छेड़छाड़µसब समाया है ईसुरी की रचनाओं में।
मनोरंजन मन बहलाव तो है ही, उसके विभिन्न रूप कलाओं के प्रारंभिक प्रस्फुटन भी हैं। ‘मनोरंजन की विधाएं’ अध्याय में लेखक इस क्षेत्र में प्रचलित ‘राई और स्वांग’, ‘सौबत या समाद अथवा मंडली’, ‘फाग’, ‘सारंगा- सदाबृरक्ष’ आदि का वर्णन किया है।
‘कुछ याद रहा कुछ भूल गए’ में आत्मवृत्तांत है। लेखक ने अब तक की अपनी जीवन-यात्र का सारांश प्रस्तुत किया है। इससे एक बात प्रकट होती है कि समय हर व्यक्ति की कठोर परीक्षा लेता है। अंतिम अध्याय ‘लोकोक्तियां, मुहावरे एवं कहावतें’ में लेखक ने परंपरागत थाती का परिचय दिया है। लोकमन इनमें ही व्यक्त होता है। समग्रतः यह पुस्तक बुंदेलखंड के सांस्कृतिक वैभव को कुशलता से प्रस्तुत करती है।

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Bundelkhand : Sanskriti Aur Sahitya”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Vendor Information

  • 5.00 5.00 rating from 3 reviews
Back to Top
X

बुक्स हिंदी