धर्म और विज्ञान की अतिवादिता से उपजे दर्द ने अगर सबसे ज्यादा छला है तो स्वयं इसके स्रष्टा को। अज्ञानता के आवरण में धर्म को ढाल बनाकर अगड़ी अथवा विकसित जातियों ने अतीत में जिस प्रकार एक पक्षीय हितों के रक्षार्थ शास्त्र गढ़ा, असमानतावाली अमानवीय व्यवस्था की नींव डाली, उसी प्रकार डिजिटल क्रांति की वैज्ञानिक समाज व्यवस्था भी लोकतांत्रिक खाल ओढ़े, पूँजीवादी व्यवस्था के हाथों खिलौना बनी हुई है। दोनों में समानता एक ही है—अद्भुत, अज्ञेय को जानने, समझने और समझाने का दावा। धर्म और ईश्वर का रहस्यात्मक जाल बुनकर ही अतीत को शास्त्रें में कैद किया गया था और टेक्नोलॉजी, खोज और आविष्कार के बल पर नये-नये रहस्यों को जानने का दावा। दोनों मुक्ति की बात करता है—एक आध्यात्मिक मुक्ति की और दूसरा भौतिक मुक्ति की। शास्त्रें के उपदेश को अक्षरशः लागू करने के लिए ब्राह्मणवादी व्यवस्था अस्तित्व में आयी थी। उसी प्रकार उपभोक्तावादी चश्मे का नम्बर बढ़ा-चढ़ाकर विकास और आविष्कारी सुविधा के नाम पर आज पूँजीवादी व्यवस्था चारों तरफ पसरी हुई है। दोनों व्यवस्था में मेहनतकश और बहुसंख्यक वर्ग शोषित हुए हैं। आज के इस वैज्ञानिक युग में भी आविष्कार और विकास के नाम पर अंतरिक्ष में घर बसाने की योजनाओं पर अरबों खर्च किए जा रहे हैं—लेकिन भूख, गरीबी, जलालत, ऊब, पीड़ा एवं जीवन से मोहभंग की समस्याएँ अपने आदिम रूप में ही किसान, मजदूर एवं मेहनतकश वर्ग को छल रही है।
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Samkaleen Yathaarth Ki Padtaal
₹400.00 ₹320.00
ISBN: 978-93-93486-68-4
Edition: 2023
Pages: 176
Language: Hindi
Format: Hardback
Author : Manoj Kumar Singh
Categories: Criticism, New Release