Description
संस्कृति और साहित्य परस्पर संबद्ध हैं। संस्कृति के अंतर्गत चेतना एवं व्यवहार-समंजित वैयक्तिकता मुक्त मनुष्य की श्रेष्ठतम साधनाएं निहित होती हैं। मनुष्य की इन्हीं श्रेष्ठतम साधनाओं की सूक्ष्म और मानवीय अभिव्यक्ति साहित्य है। साहित्य में ‘सहित का भाव’ निहित रहता है, इसलिए वह मनुष्य को उस निर्वैयक्तिक स्थिति में पहुंचा देता है जहां यद्यपि कुछ क्षणों के लिए ही सही, वह अपनी संकीर्णताओं से मुक्त हो जाता है। साहित्य साधारण मनुष्य को उसके स्वार्थ की संकीर्णता से ऊपर उठाकर उसे सुसंस्कृत करता है क्योंकि साहित्य व्यक्ति को निर्वैयक्तिकता के जिस मोड़ पर ले जाता है वहीं से मानवता का मार्ग निकलता है। श्रेष्ठ साहित्य सदैव जीवन की चिरंतन वृत्तियों का उद्घाटन करता है और यही उसका सांस्कृतिक पक्ष है। इस दृष्टि से भी साहित्य और संस्कृति का गहन संबंध ठहरता है।
डाॅ. सच्चिदानंद राय का मत हैµ‘‘संस्कृति यदि परिष्करण की क्रिया है तो साहित्य आस्वादन और आनंदोपलब्धि की। संस्कृति अगर संस्कारों का समुच्चय है तो साहित्य उनकी अंतव्र्यंजना के मर्म का उद्घाटन।’’
प्रस्तुत पुस्तक में साहित्य के अनुशीलन के क्षेत्रा में सांस्कृतिक अध्ययन के संदर्भ में भारतीय संस्कृति के विषय पर अनेक अध्यायों में विस्तार से वर्णन किया गया है।
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