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पुनर्नवा / Punarnava

300.00 250.00

ISBN : 978-93-93486-73-8
Edition: 2023
Pages: 136
Language: Hindi
Format: Hardcover

Author : Sitesh Alok

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Category:

Description

कविता मेरे जीवन में बचपन से ही कैसे जुड़ी, यह मैं नहीं जानता। गद्य तो बहुत बाद में आया… संभवतः तब जब मैं ठोकरें खाता हुआ अपने पैरों के नीचे, मात्र खड़े होने के लिए, कोई ठोस धरातल ढूँढ़ रहा था। कहते हैं कि अधिकांश गद्य-लेखक कविताओं की बैसाखी के सहारे ही कहानी-उपन्यास तक पहुँचे और नई मंषिलें पाकर उन्होंने कविता से किनारा कर लिया। कितु मैं… मैं ऐसा नहीं कर पाया।
कविता मेरे साथ रही… आज भी है। अनेक विधाओं में लिखने के बाद भी, जाने-अनजाने, कविता मेरे साथ रही। यद्यपि इसका कृष्ण पक्ष यह भी है कि मेरी प्रकाशित रचनाओं में कविताओं का योगदान कम है। प्रारंभ में मेरी कवितओं में गेय रचनाएँ ही होती थीं और आयु के अनुकुल, योग-वियोग संबंधी अथवा देश-भक्ति परक रचनाएँ भी, जो कभी-कभार आकाशवाणी अथवा स्थानीय कवि-सम्मेलनों में सुनाई गईं। कितु यथार्थ की ठोकरों ने मेरा दृष्टिकोण बदलने में देर नहीं की। फिर भी पता नहीं क्या था जिसने मुझे न तो ‘मंच-वादी’ कवि बनने दिया और न ‘जन-वादी’। जीवन में कुछ ऐसी ठोकरें मिलीं, ऐसे दलदल मिले, मानसिक पीड़ाओं के बवंडर मिले कि मुझे पता ही नहीं चला कि मैं कब और क्या लिख रहा हूँ… हाँ कुछ पत्रिकाएँ अनजाने ही मेरा मनोबल बढ़ाती रहीं।
–सीतेश आलोक

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