बुक्स हिंदी 

Sale!

मेरे साक्षात्कार: विष्णु नागर / Mere Saakshaatkar : Vishnu Nagar

400.00 300.00

ISBN : 978-93-85054-02-0
Edition: 2015
Pages: 232
Language: Hindi
Format: Hardback


Author : Vishnu Nagar

Category:

मेरे साक्षात्कार: विष्णु नागर

विष्णु नागर के पास जीवन और रचना का एक सुदीर्घ समृद्ध अनुभव संसार है। उन्होंने अनेक विधाओं में समान श्रेष्ठता के साथ लिखा है। हिंदी में ‘मूलतः’ और ‘भूलतः’ जैसे विभाजनों को वे तत्परता से मिटाते हैं। उनके भीतर एक ऐसा सजग, सक्रिय, सक्षम रचनाकार है जो सामाजिक न्याय की उत्कट इच्छा से भरा हुआ है। उनकी रचनाशीलता निजी सुख-दुःख का अतिक्रमण करती हुई व्यापक समय व समाज को भांति-भांति से अभिव्यक्त करती है।
प्रस्तुत पुस्तक में विष्णु नागर से समय-समय पर लिए गए नौ साक्षात्कार संकलित हैं। पहले साक्षात्कार को तो ‘प्रबंधात्मक साक्षात्कार’ की संज्ञा दी जा सकती है। लीलाधर मंडलोई ने आत्मीयता और विस्तार को साधते हुए ‘लंबी कविता’ व ‘लंबी कहानी’ की तरह ‘लंबा साक्षात्कार’ का उदाहरण प्रस्तुत किया है। बाकी साक्षात्कार भी विष्णु नागर के व्यक्ति और लेखक के किसी न किसी अलक्षित इलाके पर रोशनी डालते हैं। उत्तर देते हुए नागर की ‘विट’ और प्रत्युत्पन्नमति तो प्रभावी है ही, उनमें निहित संवेदनशीलता व वैचारिक प्रतिबद्धता भी प्रकट होती है।
विष्णु नागर के उत्तर पढ़ते हुए आपको गद्य के एक ऐसे स्वभाव का ज्ञान होगा जो प्रायः साक्षात्कारों में कम मिलता है। अपने पर हुए ‘असर’ के बारे में बताते हुए वे कहते हैं, ‘मुझ पर बरसात के बाद मिट्टी से उठने वाली महक का असर होता है। …मेरी गरीबी का असर होता, मेरे कस्बे का असर होता। मुझ पर समुद्र तथा नदियों का असर होता, जिनके किनारे मैं खूब बैठा हूं। …मैं चींटियों के श्रम से और कुत्तों के चैकन्नेपन से भी प्रभावित हूं।’ रचनाकार के साक्षात्कार अन्य व्यक्तियों से भिन्न क्यों होते हैं, इसका अहसास भी पुस्तक कराती है।
यह पुस्तक इसलिए अधिक महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसमें सत्ता, व्यवस्था, सभ्यता और संस्कृति के प्रति एक दुर्लभ आलोचनात्मक दृष्टि भी है।

Home
Account
Cart
Search
×

Hello!

Click one of our contacts below to chat on WhatsApp

× How can I help you?