Description
‘मेरे साक्षात्कार’ श्रृंखला में वरिष्ठ कवि, आलोचक और नाट्य चिंतक नेमिचन्द्र की पुस्तक का महत्व इस बात में निहित है कि इसमें नेमिजी के व्यक्तित्व और कृतित्व के उन पक्षों पर प्रकाश पड़ता है जो प्रायः अलक्षिप है। नेमिजी हिंदी की सबसे बुजुर्ग पीढ़ी में आते हैं और उन्होंने पिछले साठ-पैंसठ वर्षों साहित्यिक आंदोलनों, सांस्कृतिक परिवर्तनों और सामाजिक उथल-पुथल को न केवल करीब से देखा है वरन उसको जिया भी है; इसलिए यहाँ दिखाई देगा कि जिन प्रश्नों पर हम आज भी बात करने से कतराते रहे हैं, उनका सामना वे बहुत पहले कर चुके हैं। चाहे इप्टा के गठन का काल हो या बंगाल के अकाल का प्रश्न, चाहे तारसप्तक के प्रकाशन या संपादन का विवाद हो या ठप्पेदार आलोचना पर प्रहार, चाहे नाट्यालोचन में फैले धुंधलके का प्रश्न हो, चाहे व्यापक सांस्कृतिक विमर्श का-नेमिजी सब पर बात करते हैं और इस अनौपचिाकरता के साथ कि उनका कहा गया एक-एक वाक्य सबक बनता जाता है। नेतिजी अपने कृतित्व में जितने बेलाग हैं, उतने ही अपने व्यक्तित्व में भी खुले हुए। आप चाहें तो उनको साफ-साफ देख सकते हैं। अपने परिवार, उसकी समस्याएँ, स्वयं का संघर्ष और समग्रता में हमारे समाज के एक-एक रहस्य को बोलते नेमिजी रचना और व्यक्ति के उस भेद को खोल देते हैं कि दोनों में कहीं कोई गुत्ािी न है और न होनी चाहिए।
साहित्य, रंगकर्म, संस्कृति के अनेक असुविधाजनक प्रश्नों सहित व्यापक वैचारिक विमर्शों के माध्यम से नेमिजी ने जो स्थापनाएँ की हैं, वे शब्द के लिए उतनी ही महत्वपूर्ण हैं जितनी कर्म के लिए। जीवन के अनेक अनुभव यहां मानो एक ऐसा जल-स्रोत बन गए है जो हर मौसम में शीतलता देता है। साक्षात्कर अनौपचारिक और पूर्णता संवाद की शैली में हैं, इसलिए पुस्तक से गुजरते हुए पायेंगे कि आप भी इस बातचीत में शामिल होते जा रहे हैं। साहित्य और संस्कृति को परखने, अतीत को देखने और भविष्य की वैचारिकता को आधार देने की दिशा में पुस्तक का महत्व निर्विवाद रूप से प्रामाणिक होता है।
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