मेरे साक्षात्कार : चंद्रकांत देवताले
चंद्रकांत देवताले कवि हैं-स्वभाव और जीवनचर्या से, अंतःकरण और भाव-विन्यास से। उनके लिए कवि होना अधिक मनुष्य होने का ही दूसरा नाम है। इसलिए कविताओं में 60 वर्षों से भी अधिक का समय बिताने के बाद अलग से कवि होने का अहसास उन्हें प्राय: नहीं है। यह उनके लिए इतना सहज है जैसे कि मनुष्य होना।
प्रस्तुत पुस्तक में संकलित 23 साक्षात्कार एक विस्तृत समयावधि में लिए गए हैं। इसलिए इनमें एक विकास- यात्रा दिखाई देगी। एक मनुष्य नागरिक और कवि की विकास-यात्रा। पढ़ने में आवश्यक तन्मयता की दृष्टि से इन साक्षात्कारों को तीन खंडों में बाँट गया है।
ये साक्षात्कार ज़्यादातर अख़बारों और साप्ताहिक या पाक्षिक पत्रिकाओं के पत्रकारों को दिए गए हैं। जगह की एक निश्चित सीमा के कारण इन्हें सवाल-जवाब के प्रारूप में सीमित करना पड़ता है। साधारण पाठकों को संबोधित होने के कारण इनमें साहित्येतर विषयों पर सवाल ज़्यादा होते हैं। यहाँ विचार संघनित होकर सामने आए हैं। साहित्य अकादमी सम्मान प्राप्त होने के तत्काल बाद के अनेक साक्षात्कार भी इसी खंड में संकलित हैं।
चंद्रकांत देवताले के साक्षात्कारों को पढ़ते हुए ध्यान इस ओर सहज ही जाता है कि देवताले जी अन्य मार्क्सवादी कवियों और आलोचकों की तरह समाज और जनता के बारे में अमूर्त और रोमांटिक विचार प्राय: नहीं रखते। वे मौजूदा समाज के बारे में बात करते हुए आलोचनात्मक हें और उसे पोधियों की स्थिर दृष्टि से नहीं, जीवन के अपने अनुभवों से देखते हैं।