Description
‘बेटी, अच्छा हो, इस बारे में मुझसे कुछ मत पूछो। मेरे पास अब कुछ भी नहीं रहा। न कोई सवाल है, न उसका जवाब…’ मां की आंखें भर आईं। दोनों बेटियां पास बैठी चुप हो गईं। थोड़ी देर मौन रहा।
‘मां, यह एकदम कुछ दिनों से तुममें क्या बदलाव आ गया? दिल में यों कोई बड़ा भार लेकर कैसे जी सकोगी? हमें भी न बताओगी तो किसको बताओगी? हमसे भी यह सहन नहीं होता।’
‘सुरेखा, श्रतु की हत्या की जिम्मेदारी किसी पर नहीं है, तुम्हारे पापा पर है। उनके दिखाए रास्ते पर ऋतु चली थी। यों भटक-भटककर घूमती रही। फिर पता नहीं किस तरीके से मार डाली गई। गुरुचरन को तुम्हारे पापा ही घर में लाए थे। ऐसे लोगों के साथ ही उनकी मित्रता थी। हमारा कितना चहचहाता परिवार था। सब कुछ था। वे एक अच्छे अफसर थे। अच्छी आमदनी थी। पर गलत रास्ते पर चल पड़े। मुझे ठुकरा दिया। मेरा अपमान किया। मैंने लाख रोका, पर वे रुके नहीं। सारे परिवार को बर्बाद कर दिया।’
-इसी उपन्यास से
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