Description
मनुष्य की विविध अनुभूतियों में सौन्दर्यानुभूति का विशिष्ट महत्व है। सौन्दर्य का आस्वाद निर्वैयक्तिक होता है, स्व-पर की भावना से नितान्त मुक्त।सौन्दर्यानुभूति मनुष्य को ऐसे मानसिक धरातल पर।अवस्थित करती है, जहाँ पहुँच कर उसकी भौतिकतावादी दृष्टि लुप्त हो जाती है तथा सम्पूर्ण विश्व। के ‘शिवत्व’ के साथ उसका तादात्म्य स्थापित हो जाता है।सौन्दर्यानुभूति में रुचि, संस्कार, शिक्षा, स्मृति और कल्पना आदि का योग अनिवार्य रूप से विद्यमान रहता है। कवि का सौन्दर्य-बोध या उसकी सौन्दर्य-चेतना का अनुभव उसके अन्तर्जगत की निधि होती है। यही ‘बोध’ या ‘चेतना’ अनुभूति के प्रगाढ़ एवं प्रबल होने परकवि के व्यक्तित्व एवं प्रतिभा द्वारा रचना-प्रक्रिया से सम्बद्ध होकर अभिव्यंजनात हो जाती है।मध्यकालीन हिन्दी साहित्य में कृष्ण का व्यप्रचुर मात्रा में लिखा गया है। इस व्यापक आधार भूमि से सम्पन्न काव्य की सूक्ष्मता और परिव्याप्ति की पकड़ सौन्दर्य-चेतना के।अध्ययन से ही सम्भव है।इस पुस्तक में कृष्ण साहित्य के इसी सत्यं, शिवं तथा सुन्दरं भाव एवं पारम्परिक भारतीय जीवन-दृष्टि को, मौलिक निष्कर्षों एवं स्थापनाओं के साथ प्रस्तुत किया गया है।
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