Description
आठवें दशक में सर्जनात्मक लेखन प्रारंभ करके डाॅ. अरुणा सीतेश ने हिंदी कथा-लेखिकाओं के बीच अपनी विशिष्ट पहचान बनाई। सहज शैली में, बनते-बिखरते पारिवारित एवं सामाजिक संदर्भों का सजीव चित्रण उनकी विशेषता थी।
अरुणा जी की अधिकांश कहानियां नारी-मन की गहन में संजोई भावनाओं का चित्रण कुछ ऐसे प्रस्तुत करती हैं कि हमारे जाने-पहचाने चरित्र आंखों के आगे सजीव होते चले जाते हैं, जिनमें पारंपरिक परिवार की बड़ी-बूढ़ियां भी होती हैं और आज के जटिल दौर की महिलाएं भी। क्या गृहिणी और क्या नई रोशनी की चकाचैंध में अपनी पहचान तलाशती संघर्षरत नारियां, सभी के चित्रण पर उनकी पकड़ थी। इतना ही नहीं, नित-नई महत्त्वाकांक्षा और जीवन-मूल्यों की टकराहट के बीच जूझती, भटकती, ठोकर खाती और अपना मार्ग बनाती नई पीढ़ी की कथा-व्यथा पर भी उनकी लेखनी साधिकार चलती रही।
आश्चर्य नहीं कि जीवन के सांध्यकाल में लिखी उनकी कहानी ‘तीसरी धरती’ को हिंदी की कालजयी कहानियों के उस संग्रह में सम्मिलित किया गया, जो साहित्य अकादेमी द्वारा शीघ्र ही प्रकाशित हो रहा है।