पीठ पीछे की दुनिया
कहानियां अब भावहीन हो जाना चाहती हैं। बहुत सारी आशाओं, सपनों और कसमों से जरा अलग हटकर। सांस लेना चाहती हैं। सीमाओं के परे पढ़ने वाले के अंतर्मन में पैठने वाली। नीलम की कहानियां सहजता से यह सब करती हैं। उन्होंने बातचीत की भाषा को इसके लिए चुना है। बोलने वाली भाषा। जैसा बोलते हैं वैसा ही लिखें। हू ब हू।
नीलम की कहानियां व्यंग्य का सहारा लेकर किसी चरित्र को उधेड़ती नहीं हैं। वे संबंधों को अनेक स्तरों तक ले जाने के लिए हैं। उनका ताप दफ्तरों में धीमे-धीमे सांस ले रहे लोगों को उकसाता है। बहुरंगी और मानवीय चरित्र अपने आप को कितना विचित्र बना डालने के लिए आतुर है। कहानियां यह इंगित करती हैं। पीठ पीछे की निस्संग दुनिया को देख पाना नीलम ने संभव किया है।
संबंध जब बोझ बन जाते हैं तब नैतिकता घुलने लगती है। नीलम ने बहुत साहस से, अनेक कहानियों से इसे हम तक पहुंचाया है। यहां मध्यम संगीत की अनुगूंजें हैं। जैसे जीने का विश्वास। अदम्य। अचूक। प्रेम की टूटती डोर में, अवसाद में भी यह कला, आकर्षण की ओर ले जाती है।
यह कहानी-संग्रह नए कथा क्षेत्र में सादगी, विस्तार और अनुपम अनुभवों से हमें संपन्न बनाता है।
—शशांक