अथर्ववेद: युवाओं के लिए
‘वेद: युवाओं के लिए’ ग्रन्थमाला की अन्तिम कड़ी ‘अथर्ववेद: युवाओं के लिए’ प्रस्तुत है। इसमें अथर्ववेद के 120 मन्त्रों को दस शीर्षकों के अन्तर्गत समाहित किया गया है। अथर्ववेद की विषयवस्तु अत्यन्त रोचक तथा विविधता लिए हुए है। यही नहीं–ज्ञान, शिक्षा तथा गुरु-शिष्य के सम्बन्धों पर भी यहाँ प्रकाश डाला गया है। परिवार में अतिथि की महत्ता का उल्लेख हुआ है तो अन्य पारिवारिक सम्बन्धों की समरसता का महत्त्व बताया गया है। शुभ-अशुभ, पाप-पुण्य दोनों ही जीवन में रहते हैं। अथर्ववेद का यथार्थवाद दोनों का वर्णन भी करता है तथा अशुभ से, पाप से मुक्ति की राह बताता है, प्रायश्चित्त का विधान भी करता है।
यद्यपि व्यक्तिगत सौख्य के लिए यहाँ शत्रुनाशविषयक मन्त्र भी हैं तथा कुछ जादू-टोने जैसी क्रियाएँ भी वर्णित हैं परन्तु तब भी समष्टिगत कल्याण की उपेक्षा नहीं हुई है। आयुर्वेद का मूल ग्रन्थ होने के नाते यहाँ रोगों के नाम, लक्षण तथा उपचार विधियाँ वर्णित हैं। इन विधियों की विविधता व्यक्त करती है कि शारीरिक-मानसिक स्वास्थ्य के लिए अथर्ववेद के ऋषि कितना सजग थे। वनस्पतियों, औषधियों के नाम, उनके गुण तथा रोग-विशेष में उनके उपचारात्मक प्रयोग भी बहुधा वर्णित हुए हैं।
राजनीति पर यहाँ विशिष्ट सामग्री उपलब्ध है। राजा, उसकी सेना, अस्त्र-शस्त्र, युद्धनीति और शत्रुनाशपरक प्रार्थनाओं का अपना महत्त्व है। विभिन्न वृक्ष, लताओं, वनादि के वर्णन तथा जल, वायु को सम्बोधित सूक्तों से पर्यावरण- विषयक चिन्तन झलकता है। ‘भूमिसूक्त’ में प्रथम बार ‘धरती माँ’ का उल्लेख है–‘माता भूमिः पुत्रोअह पृथिव्याः’–‘भूमि माता है मैं पृथिवी का पुत्र हूँ।’ यह माता-पुत्र के गहन सम्बन्ध धरती का पर्यावरण संरक्षण करता है तथा राष्ट्र की रक्षा के लिए सन्नद्ध भी करता है। सबके भीतर दिव्यता है, सब प्रेमभाव से जुड़े हैं, जुड़े रहें। विश्व संरक्षण, विश्व कल्याण के तत्त्व सत्य, ऋत, दीक्षा, ज्ञान, तप, यज्ञादि हैं। आतंक हिंसा से जूझते विश्व में अभयता का साम्राज्य हो–यही कामना व्यक्त हुई है।
यह पुस्तक उन सभी के लिए है जो ‘मन से युवा’ हैं तथा प्राचीन सभ्यता व संस्कृति को आधुनिक संदर्भों में समझना चाहते हैं।