Description
हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की राग-रागिनियों के सविस्तार विवेचन एवं गहन अनुभव से संपन्न ऐसी विलक्षण साहित्यिक रचना, जैसी शायद ही भारत की किसी अन्य भाषा में प्रकाशित हुई हो। यह भारतीय साहित्य के विद्वज्जनों तथा पाठकों की प्रशंसा पाने वाली एक महान् कृति है, जिसमें भारतीय शास्त्रीय संगीत-जगत् के अंतर-बाह्य विमर्शों, शास्त्र संबंधी सूक्ष्म अंशों तथा जीवन-दर्शन का विस्तृत विश्लेषण है।
इस उपन्यास की लोकप्रियता का ही यह परिणाम है कि इसके प्रकाशित होते ही तीन माह के अंदर इसकी दूसरी आवृत्ति हुई और अब तक चार आवृत्तियाँ हो चुकी हैं। इसका मराठी अनुवाद प्रेस में है और अंग्रेजी अनुवाद हो रहा है।
इस उपन्यास के संबंध में अब तक विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं के तत्तवावधान में चार संगोष्ठियां हो चुकी हैं, जिनमें से दो संगोष्ठियों में प्रस्तुत लेख पुस्तक के रूप में प्रकाशित है।
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