Description
विकलांग विभूतियों को जीवनगाथाएँ
विकलता महापुरुषों ने समाज के हर क्षेत्र, जैसे वैदिक रचना, साहित्य, कला, विज्ञान, आविष्कार, वीरता, राजनीति, खेल आदि में उत्कृष्ट प्रदर्शन करके दिखा दिया है कि वे समाज में उत्कृष्ट प्रदर्शन कर सकते हैं । विकलांगों के संबंध में नीतियाँ और कार्यक्रम बनाते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि ये व्यक्ति अंतत: समाज में अपना बराबर का योगदान करने लायक बन सके ।
—जे०बी० सिंह, सदस्य सचिव, भारतीय पुनर्वास परिषद
किसी भी सामाजिक समस्या के हल के लिए उपयोगी साहित्य को आवश्यकता होती है । ऐसा साहित्य समस्या के प्रति जनचेतना तो जगाता ही है, समाज को इसके हल के नजदीक ले जाने में भी सहायक होता है । पुस्तक में विकलांग विभूतियों के व्यक्तित्व की विवेचना के अलावा विकलांगता का इतिहास, विकलांगता के बारे में समय-समय पर बदलती धारणा, विकलांग विभूतियों की सफलता का राज भी वर्णित है ।
—डॉ० वीरेंद्र शर्मा, भारतीय विदेश सेवा ( अव०), पूर्व राजदूत
पुस्तक में वर्णित अनेक महापुरुषों के बारे में हम काफी जानते रहे हैं, पर उनकी चर्चा करते समय हमें कभी ध्यान नहीं रहता है कि वे विकलांग थे । पुस्तक में दिखाया गया है कि किस प्रकार इन विभूतियों ने अपने जीवन में तमाम बाधाओं का सामना किया तथा पीड़ाएँ सहीं और अंतत: इन पीड़ाओं को ही पूँजी बनाकर सफलता हासिल की । इनमें से अनेक को समाज से कुछ नहीं मिला, पर उन्होंने समाज को जो दिया, वह अमूल्य था ।
—ए० वेंकट नारायण, कापी एडीटर, ‘स्पान’ अमेरिकन सेंटर
नेत्र हीनों का कृतित्व इतना सुंदर क्यों होता है, विकलांग वैज्ञानिकों द्वारा किए गए आविष्कार इतने उपयोगी क्यों होते हैं, निरंतर ये प्रश्न उठते हैं और उत्तर मिलता है कि शिक्षा असंभव नहीं हो सकती, चाहे विकलांगता कितनी भी गंभीर क्यों न हो । इस पुस्तक में उपरोक्त निष्कर्ष लम्बे और गहन शोथ के बाद निकाले गए हैं ।
—के ० कानन, पत्रकार, ‘हिन्दू’
Reviews
There are no reviews yet.