Description
पत्र-संवाद अज्ञेय और रमेशचंद्र शाह
अज्ञेय जी ने पुराने-नए लेखकों को अनगिनत पत्र लिखे हैं। यहां मैंने रमेशचंद्र शाह और अज्ञेय के पत्रों को एक साथ दिया है। इन पत्रों का मूल स्वर आत्मीयता से भरा-पूरा है। सार संक्षेप यह कि एक-दूसरे के प्रति स्नेह, आदर का इन पत्रों में एक संसार है। आचार-विचार में मतांतर रहते हुए भी आत्मीय संबंधों की मिठास में कोई कमी नहीं है। अज्ञेय के पत्रों में सामाजिक-राजनीतिक संदरभों की कमी पर विस्मय का अनुभव किया जा सकता है। स्वाधीनता-आंदोलन, गांधी जी की हत्या, राजनेताओं से मोह-भंग, नेहरू युग के अंधकार, आपातकाल की काली छाया आदि का उल्लेख किसी पत्र में विस्तार से नहीं है। देश में जो हुआ उसका मातम उत्तर अज्ञेय के सृजन-चिंतन में बहुत विस्तार से मौजूद है।
‘पत्र-लेखन’ कला में विदग्ध कवि-आलोचक, कथाकार रमेशचंद्र शाह जैसा हो तो कहना ही क्या। शाह जी के पास एक ताकतवर व्यंजक भाषा है जिसकी अर्थ-ध्वनियां दूर तक गूंज छोड़ती रहती हैं। शाह जी जैसे अन्य विधाओं में अनेक रूपात्मक हैं-बैसे ही पत्रों में रंगों-छवियों , विदग्ध वक्रोक्तियों में। उसी बेदना, उल्लास, हुडुक तथा चाहत के साथ। पत्र भी अकथ कहानी प्रेम की कहते हैं-उनका मौन भी मुखर होकर बोलता हे।
-संपादक