Description
ये साक्षात्कार-‘इंटरव्यू’ शायद अधिक व्यावहारिक और विनयपरक शब्द है-लगभग पिछले पच्चीस वर्षों के दौरान विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के लिए दिए गए थे। पुस्तक के लिए सिर्फ उन साक्षात्कारों को चुना गया है, जो कमोबेश कला, साहित्य और समाज के उन प्रश्नों को छूते हैं, जो आज भी विचारोत्तेजक विवाद का विषय बने हुए हैं। इसका श्रेय मेरे ‘उत्तरों’ को नहीं जाता, उन ‘प्रश्नों को जाता है जो हिंदी समाज में किसी न किसी रूप में हमेशा हाथ उठाए दिखाई देते हैं।
-निर्मल वर्मा
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