Description
सुविख्यात कथाकार और नाट्यलेखक भीष्म साहनी हिंदी के उन महत्वपूर्ण व्यक्तियों में से हैं, जिनके जीवन और रचनाशीलता में गहरी अंतरंमता है। दूसरे शब्दों में, अद्भुत पारदर्शिता और संगति। उनके जीवन में जो सादगी और सामाजिकता है, वही उनकी रचनाओं में भी है।
दूसरे शब्दों में कहा जाए तो भीष्म जी से साक्षात्कार करना अपने समय से साक्षात्कार करना है; उनकी उस दुनिया से, जिसने उन्हें लिखने की प्रेरणा दी। इस प्रेरणा को उनके अपने जीवनानुभवों, युगीन समस्याओं और प्रगतिशील विचारों ने सुदृढ़ किया है। यही कारण है कि वे लेखक को एक व्यक्ति के रूप में विरल या विलक्षण नहीं मानते। इस संदर्भ में भीष्म जी के ही शब्दों मंे कहें तो एक लेखक की ‘विलक्षणता उसके रचनाकर्म तक ही सीमित रहती है। साहित्य में सदा उत्कृष्ट रचनाओं को ही मान्यता मिलती रही है, लेखक को यदि मान्यता मिलती है तो उन्हीं रचनाओं के संदर्भ में। लेखक उनसे अलग, एक व्यक्ति के नाते महिमामंडित नहीं होता। यह धारणा कि चूंकि अमुक व्यक्ति लेखकहै, इसलिए विरल है, विलक्षण है-निराधार है, और यह अब टूटती जा रही है। मैं समझता हूँ, साक्षात्कार इसी मिथ्या अवधारणा को तोड़ने में सहायक होते हैं।’
कहना न होगा कि भीष्म जी की यह साक्षात्कार कृति उन्हें और उनके लेखन को दूर तक समझने का अवसर जुटाती है। इससे हम उनके जीवन-परिवेश को तो समझते ही हैं, समकालीन रचनात्मक परिदृश्य से संबद्ध सवालों और सरोकारों को भी पहचानते हैं। एक महत्वपूर्ण लेखक को उसके समकालीनों और परवर्ती साहित्यकर्मियों के रू-ब-रू बैठकर सुनना-समझना पाठकों के अनुभव-संसार में निश्चय ही बहुत कुछ नया जोड़ने वाला है।
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