मंजिल अभी दूर है
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हमने एक मंजिल तय की, एक संकल्प लिया उस मंजिल तक पहुँचने का, परंतु आधी सदी बीत जाने के बाद भी हम उस मंजिल तक पहुँचे नहीं है । इसका सीधा-सा अर्थ यह है कि या तो हम चले ही नहीं या फिर मंजिल के लिए जो रास्ता चुना, वह ठीक नहीं था ।
लोकतंत्र की संसदीय प्रणाली और उस प्रणाली को चलाने वाले नेता-दोनो ही आज की इस परिस्थिति के लिए जिम्मेदार हैं। आधी सदी पूरी हो चुकी है। एक प्रणाली का परीक्षण हो चुका है । अब इस बात की आवश्यकता है कि उस संसदीय प्रणाली पर पुनर्विचार किया जाए और भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था में उचित संशोधन किया जाए ।
जब भारत का संविधान बनाया गया तो संविधान निर्माताओं ने विश्व की अन्य प्रणालियों की सार्थकता तथा उपयोगिता पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया । उन सबके मन में ऐतिहासिक कारणों से एक बात घर कर गई थी कि भारत के लिए ब्रिटेन की संसदीय प्रणाली ही उपयोगी है क्योंकि पिछले लगभग 200 वर्षों से भारत किसी न किसी प्रकार से इस प्रणाली से जुडा रहा ।