Description
इस खिड़की से
‘इस खिड़की से’…यानी ‘अकेला मेला’ के ही नैरंतर्य में एक और मेला, एक और समय-संवादी आलाप…जो एकालाप भी है, संलाप भी, मंच भी, नेपथ्य भी…
‘अकेला मेला’ देखते-सुनते-गुनते…कुछ प्रतिध्वनियाँ …कतिपय पाठक-समीक्षक मंचों से…अब इस खिड़की से जो दिखाई-सुनाई देने वाला है–मानो उसी की अगवानी में।
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डायरी-लेखन को साहित्य का गोपन कक्ष कहना अतिशयोक्ति न होगी।…काफ्का, वाल्टर बेन्यामिन जैसे कई लेखकों ने डायरी विधा के अंतर्गत श्रेष्ठ लेखन किया। मलयज या निर्मल वर्मा की डायरी उनके समस्त लेखन को समझने का उचित परिप्रेक्ष्य देती है। डायरी- लेखन की इसी परंपरा में नई प्रविष्टि है रमेशचन्द्र शाह की डायरी ‘अकेला मेला’। इस डायरी की सबसे बड़ी खूबी यह है कि लेखक में कहीं भी दूसरों को बिदका देने वाली आत्मलिप्तता नहीं।
–हिंदुस्तान
शाह केवल डायरी नहीं लिखते, वे अपने समय से संवाद करते दिखाई देते हैं। उनकी डायरी की इबारतें ऐसी हैं कि एक उज्ज्वल, संस्कारी अंतरंगता मन को छूती हुई महसूस होती है।…यह डायरी एक ऐसा ‘ग्लोब’ भी बनकर सामने आती है, जो मनुष्य की बनाई सरहदों को तोड़ती हुई शब्द-सत्ता का संसार रचती है, जिसमें दुनिया के महान् रचनाकारों की मौजूदगी को भी परखा जा सकता है। डायरी में शाह ने अपने विषय में अपेक्षाकृत कम लिखा है, लेकिन जितना लिखा है, वह एक विनम्र लेखक की शाइस्ता जीवन-शैली की ही अभिव्यक्ति है।
–कादम्बिनी
एक अकेला लेखक कितनी तरह के लोगों के मेले में एक साथ! कितनी विधाओं और कृतियों में एक साथ!…और कितनी आत्म-यंत्रणाओं और मंत्रणाओं में एक साथ!
–जनसत्ता
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