हजारीप्रसाद द्विवेदी वस्तुत: हिंदी भाषा और साहित्य के आचार्य थे। पालि, प्राकृत, अपभ्रंश, संस्कृत, हिंदी और बांग्ला आदि भाषाओँ के तलस्पर्शी ज्ञान ने उनके चिंतन व सृजन को विलक्षण आयाम प्रदान किए। शातिनिकेतन से शिवालिक के बीच विस्तृत आचार्य द्विवेदी को कीर्तिकथा हिंदी का गौरव है। आचार्य द्विवेदी के जीवन और कृतित्व पर प्रभूत मात्रा में लिखा गया है। उन्हें आकाज्ञाधर्मी गुरु और व्योमकेश दरवेश कहकर सखोंधित किया गया। ‘आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी : कुछ संस्मरण’ इस संदर्भ में एक स्थायी महत्व की पुस्तक है। आचार्य द्विवेदी पर विख्यात व्यक्तित्वों द्वारा लिखे गए महत्वपूर्ण संस्माणों की इस पुस्तक का संपादन सुप्रसिद्ध साहित्यकार कमलकिशोर गोयनका ने किया है। पुस्तक को भूमिका में वे लिखते हैं, ‘आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी की किसी लेखक द्वारा जीवनी लिखने या उनके जीवन को जानने को जिज्ञासा जब भी पाठकों के मन में उत्पन्न होगी तब-तब ये संस्मरण उसे आत्मीय-जीवत एवं सार्थक प्रतीत होने के साथ उनको स्मृति को अक्षुष्ण बनाने में सहायक सिद्ध होगे।’
इस पुस्तक को विशेषता यह है कि द्विवेदी जी का संस्परणात्मक मूल्याकन प्राय: सभी पक्षों से किया गया है। इस अर्थ में इसे आलोचना की आंख से भी पढा जा सकता है। समग्रत: एक विराट व्यक्तित्व और उसके कालजयी कृतित्व का समवेत संस्मरणात्मक अनुशीलन। पठनीय व संग्रहणीय पुस्तक ।