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Idhar Ki Hindi Kavita

100.00 85.00

ISBN: 978-81-7016-452-4
Edition: 1999
Pages: 132
Language: Hindi
Format: Hardback


Author : Ajit Kumar

Category:

कविता की अपनी व्याख्या को उन्होंने पहले संग्रह में ‘स्नेहमयी व्याख्या’ नाम दिया था, जिसका मतलब कुछ लोगों ने यह निकाला कि कविता उनके लिए एक घरेलू मामला है।
अब यदि वे ‘इधर की हिंदी कविता’ प्रकाशित कर रहे हैं तो पहला प्रश्न यही उठेगा कि ‘इधर’ की व्याप्ति किधर तक है? इसका एक उत्तर यह होगा कि ‘इधर’ वहां तक है, जहां से ‘उधर’ शुरू होता हैं उत्तर और भी हो सकते हैं, वैसे ही जैसे कि प्रश्न अनेक होंगे।
उनमें से किन्हीं को समझने और अपने तईं सुलझाने की कोशिश इन लेखों में हुई है। संभव हे, वह आधी-अधूरी कोशिश हो, जिसका कुछ कारण इस स्थिति में देखा जा सकता है कि अजित कुमार अपने को समीक्षकों के बीच कवि और कवियों के बीच समीक्षक पाते रहे हैं। संभव तो यह भी है कि इसी नाते उन्हें निराला प्रिय हों, जिनका खयाल था-
‘बाहर मैं कर दिया गया हूं।
भीतर, पर, भर दिया गया हूं।’
कौन जाने, अपठनीयता की मारा-मारी में पठनीयता का यह हस्तक्षेप दमघोंटू माहौल में ताजी हवा के एक झोंके-सा मालूम हो।

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