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गई झुलनी टूट / Gayi Jhulni Tut (PB)

200.00 170.00

ISBN : 978-81-936159-7-3
Edition: 2018
Pages: 135
Language: Hindi
Format: Paperback


Author : Ushakiran Khan

Categories: ,
उषाकिरण खान हिंदी की ऐसी रचनाकार हैं जिन्हें असंख्य पाठकों का साथ मिला है। वे चालू फैशन की ओर या प्रायोजित विमर्श की ओर कभी नहीं जातीं। उनके  पास बेशुमार कहानियां हैं जो पाठकों को व्यापक संवेदना से जोड़ती हैं।
उषाकिरण खान का यह नया उपन्यास गई झुलनी टूट उनकी प्रसिद्धि को एक कदम आगे लेकर जाता है। इसमें उन्होंने एक सीधा-सादा मगर मार्मिक सवाल उठाया है,
‘…जीवन केवल संग-साथ नहीं है। संग-साथ है तो वंचना क्यों है?’ इस रचना में उन्होंने सामान्य भारतीय परिवेश में एक स्त्री की जीवन-दशा का मार्मिक चित्रण किया है। वे अपने अनुभवों का इतना विस्तार करती हैं जैसे पूरा उपन्यास उनके आसपास जीवित किसी पात्र की दास्तान है। वे धरती की ध्वनियों को सुनती हैं और जीवन की जय-पराजय महसूस करती हैं।
अथाह संघर्षों के बीच भी उषाकिरण खान जिजीविषा का संदेश देती हैं, ‘किसी एक व्यक्ति के सुख से न तो खेतों में हरियाली छा जाती है, न उसके दुःख के ताप से खेत, नदियां, तालाब सूख जाते हैं। जब मन में पीड़ा का आलोड़न हिलोरें लेने लगता है तब भी चेहरे पर मुस्कान रखना पड़ता है सामने की पौध के लिए।’
लोकजुड़ाव उषाकिरण खान की शक्ति है। यह उपन्यास सिद्ध करता है कि वे मैथिली और हिंदी की अद्वितीय कथाकार हैं। ऐसी कथाकार जिन्होंने नारी मन को पहचाना है और बिना स्त्री-विमर्श के कुलीन झंझट में पड़े उसके मन की सच्चाइयों को व्यक्त किया है। इसमें विशेषता यह है कि उपन्यास जीवन की सहजता को कहीं से खंडित नहीं करता और न ही यह लगता है कि अमुक कथा प्रसंग या पात्र गढ़कर पेश किया गया है। प्रस्तुत उपन्यास ‘भारतीय उपन्यास’ का एक प्रतिनिधि रूप है। इसमें जीवन-जगत् की अनुपम अनुगूंज है।
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