प्रस्तुत संकलन में दस कहानियां हैं जो लगभग दस ही सम-सामयिक मुद्दों पर केंद्रित हैं। इनमें गांव में रहते अकेले लोग, विशेषकर बुजुर्ग हैं। उनकी अपनी संस्कृति और रीति-रिवाज हैं। उनके देवता हैं, जिनकी देव-पंचायतों के किसी भी फैसले को वे सिर झुकाकर स्वीकारते हैं। उन्हें आज भी अपने देवता पर इतना भरोसा है कि हर जरूरत, हर मुसीबत और हर बीमारी में वे पहली गुहार अपने देवता के दर पर ही लगाते हैं। इन लोक-देवताओं के मंदिरों में आज भी जातिगत असमानताएं इतनी हैं कि वहां ढोल-नगाड़ा बजाने वाला दलित न तो देवता के मंदिर में प्रवेश कर सकता है और न ही अपने देवता के रथ को स्पर्श करने का वह अधिकारी है। वे पीढ़ी दर पीढ़ी इस चलन को निभाते चले आ रहे हैं। आश्चर्य होता है कि आज भी जब वे देव-जातराओं में दो या तीन दिनों के लिए देवता के साथ घर से बाहर जाते हैं तो सौ रुपए से ज्यादा ध्याड़ी नहीं मिल पाती। जबकि सवर्ण लोग जिनका उस देवता पर पूर्ण अधिकार होता है, उन्हें तमाम सुविधाएं मौजूद रहती हैं। वे घर से भी संपन्न हैं, आदर-सत्कार में भी सर्वोच्च हैं और रहन-सहन में भी।
Sale!
दस प्रतिनिधि कहानियाँ: एस. आर. हरनोट / Dus Pratinidhi Kahaniyan : S. R. Harnot (PB)
₹180.00 ₹162.00
ISBN : 978-81-933728-7-6
Edition: 2017
Pages: 160
Language: Hindi
Format: Paperback
Author : S. R. Harnot
Category: Paperback