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अत्र कुशलं तत्रास्तु / Atra Kushlam Tatrastu

500.00 425.00

Collection & Edition by : Dr. Vijai Mohan Sharma, Dr. Sharad Nagar
ISBN : 81-7016-681-0
Publisher : Kitabghar Prakashan
Binding : Hardbound
Page : 318

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पत्रें में एक ऊष्मा होती है जो उनके पढ़ने वालों को प्रभावित करती है। संभवतः इसका एक कारण यह है कि पत्रें में लिखने वालों की तुरत-प्रतिक्रिया दर्ज होती है। जैसा दिन ने महसूस किया, पत्रें में वैसा ही लिखा गया। इसके अलावा पत्रें में लिखने वालों की निजी जिंदगी की बहुत-सी बातें आ जाती हैं जिनसे उनके व्यक्तित्व के बारे में जानकारी मिलती है। ऐसी जानकारी अन्यत्र उपलब्ध नहीं होती। इसीलिए पत्र कितने भी पुराने हो जाएँ, एनकी ताजगी और पठनीयता बनी रहती है। और अगर पत्र-लेखक कलाकार हो तो फिर कहना ही क्या। कलाकार अपने समय की राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों पर नजर तो रखता ही है, उन पर टिप्पणियाँ भी करता चलता है। कलाकारों में भी अगर यह अमृतलाल नागर और रामविलास शर्मा हों तो समझिए सोने पर सुहागा। अलग-अलग विधाओं के यह दोनों मारथी कलाकार, साथ होने पर जुगलबंदी का समाँ पेदा करते थे। इसलिए इन दोनों के पत्रें का संग्रह तो होना ही था।

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