Description
साहित्य, ज्ञान, विज्ञान और तकनीक आदि के लिए अनुवाद एक अनिवार्यता है। विश्व की अगणित भाषाओं, संस्कृतियों, जीवन पद्धतियों के बीच संवाद का एकमात्र सेतु अनुवाद है। अनुवाद की प्रकृति, प्रवृत्ति, परिभाषा, प्रक्रिया पर विद्वानों के बीच विमर्श होता रहा है। ‘अनुवाद-कला’ ऐसे अनेकानेक जरूरी सूत्रें
व संदर्भों को व्याख्यायित करती पुस्तक है। भाषाविज्ञान और इसके विविध पक्षों पर ऐतिहासिक महत्त्व का कार्य करने वाले डॉ- भोलानाथ तिवारी की यह पुस्तक ‘ड्डोत भाषा’ व ‘लक्ष्य भाषा’ के रिश्तों को जानने में रुचि रखने वालों के बीच बेहद पसंद की गई है। लेखक ने इसकी विशिष्टता बताते हुए कहा है, फ्—मेरा मुख्य बल इस बात पर रहा है कि साहित्य का अनुवाद सर्जनात्मक होना चाहिए। अनुवाद प्रायः पुनः सृजन होता है, तो उस पुनः सृजन या पुनर्रचना के लिए अनुवादक क्या करे। इस पुस्तक में इन विषयों के विज्ञान पक्ष या इनकी
समस्याओं की तुलना में अनुवाद के कलापक्ष को रेखांकित करने का प्रयास
किया गया है—।य्
विद्वान् लेखक ने बहुत रोचक तरीके से इस तथ्य को प्रस्तुत किया है कि अनुवाद और मूल रचना दोनों की गरिमा के लिए कौन-कौन सी सावधानियाँ रखनी चाहिए। पुस्तक में व्यावहारिक पक्ष पर बहुत ध्यान रखा गया है। बहुतेरे उदाहरणों द्वारा अनुवाद और उसकी सार्थकता का विश्लेषण है। भिन्न-भिन्न भाषाओं में रुचि रखने वाले पाठकों, शोधार्थियों व अनुवादकों के लिए एक संदर्भ ग्रंथ।
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