Description
कविता सृष्टि का रूपान्तर है। मुनि रूपचन्द्र जी इस रूपान्तर के अनोखे भाष्यकार हैं जो प्रचलित काव्यशैलियों में निरन्तर उस गहरे, अनिर्वच आत्म-गोपन को वाणी दे रहे हैं।
प्रचलित शब्दार्थों से आन्तरिक ध्वन्यार्थों को व्यंजित करने का चामत्कारिक कौशल इन कविताओं में है। इनमें अतिरिक्त रूप से कोई प्रदर्शन नहीं है। अत्यन्त सहज भाव से मानवीय आर्द्रता को रूप देने की साधना का ही जैसे यह प्रतिफल है।