एक थी सारा मेरी तहरीरों से कई घरों ने मुझे थूक दिया है लेकिन मैं उनका जायका नहीं बन सकती मैं टूटी दस्तकें झोली में भर रही हूँ ऐसा लगता है पानी में कील ठोक रही हूँ हर चीज़ बह जाएगी—मेरे लफ्ज, मेरी औरत यह मशकरी गोली किसने चलाई है अमृता ! जुबान एक निवाला क्यूँ कुबूल करती है ? भूख एक और पकवान अलग-अलग देखने के लिए सिर्फ ‘चाँद सितारा’ क्यूँ देखूँ ? समुंदर के लिए लहर ज़रूरी है औरत के लिए जमीन जरूरी है अमृता ! यह ब्याहने वाले लोग कहाँ गए ? यह कोई घर है ? कि औरत और इजाजत में कोई फर्क नहीं रहा… मैंने बगावत की है, अकेली ने, अब अकेली आंगण में रहती हूँ कि आजादी से बड़ा कोई पेशा नहीं देख ! मेरी मज़दूरी, चुन रही हूँ लूँचे मास लिख रहीं हूँ कभी मैं दीवारों में चिनी गई, कभी बिस्तर से चिनी जाती हूँ… [इसी पुस्तक से]
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एक थी सारा / Ek Thi Sara
₹240.00 ₹204.00
ISBN: 978-81-88125-53-1
Edition: 2018
Pages: 160
Language: Hindi
Format: Hardback
Author : Amrita Pritam
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