Description
जीता-जागता राष्ट्रपुरूष है। हिमालय इसका मस्तक है, गौरी शंकर शिखा हैं कश्मीर किरीट है, पंजाब और बंगाल दो विशाल कंधे हैं। बिन्ध्याचल कटि है, नर्मदा करधनी है। पूर्वी और पश्चिमी घाट, दो विशाल जंघाएँ हैं। कन्याकुमारी इसके चरण हैं, सागर इसके पग पखारता है। पावस के काले-काले मेघ इसके कुंतल केश है। चांद सूरज इसकी आरती उतारते हैं। यह वन्दन की भूमि है, अभिनन्दन की भूमि है। यह तर्पण की भूमि है, यह अर्पण की भूमि है। इसका कंकर-कंकर शंकर है, इसका बिंदु बिंदु गंगाजल है। हम जिएँगे तो इसके लिए, मरेंगे तो इसके लिए।
-अटल बिहारी वाजपेयी