Description
सुश्री ममता किरण के कविता-संग्रह ‘वृक्ष था हरा-भरा’ की टंकित प्रति देख गया। उनकी कविताओं से यह मेरा पहला परिचय था। पहला प्रभाव यह पड़ा मेरे मन पर कि प्रचलित लोकप्रिय कविता और सुपरिचित समकालीन कविता के बीच से एक रास्ता निकालने की कोशिश इनके यहाँ दिखाई पड़ती है। यह कोशिश दिलचस्प है और इसलिए सहज पठनीय भी। यहाँ दो प्रकार की कविताएँ देखने को मिलीं। एक जो बाकायदे गीत की शैली में लिखी गई हैं और दूसरी वे जो मुक्त छंद को माध्यम बनाकर लिखी गई हैं।
इस संग्रह में जहाँ जाकर मैं रुका, वह ‘संबोधन’ शीर्षक कविता थी, जिसमें ये पंक्तियाँ आती हैं–
कंक्रीट के इस जंगल में
एकदम अप्रत्याशित
एक बुजुर्ग से अपने लिए
बहूरानी संबोधन सुनकर
जिस तरह मैं चौंकी
उसी तरह अनायास
श्रद्धा से झुक भी गई
बहूरानी कहने वाले के सामने
इन पंक्तियों में एक मानवीय संस्पर्श है जो अच्छा लगता है। कहीं-कहीं एक शुभाकांक्षा की प्रतिध्वनि भी सुनाई पड़ती है कुछ पंक्तियों में और शायद इस रचनकर्त्री की कविता का मूल स्वर भी यही है। अपने अस्तित्व से नदियों-पोखरों और झीलों को भर देने के आवेग के साथ-साथ ‘प्यार का पैगाम’ बन जाने और ‘बुझे चूल्हों की आँच’ बन जाने की स्त्रीसुलभ संवेदना भी यहाँ दिखाई पड़ सकती है। अपने इसी मूल स्वर के कारण यह संग्रह प्रेमी पाठकों तक पहुँचेगा, ऐसा मुझे लगता है।
—केदारनाथ सिंह
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