Description
‘कैसी हो?’ मैंने पूछा
‘आप यहां तक पहुंचे कैसे?’ हिमगंगा का स्वर कांप उठा।
‘यह कारखाना मैं लगा रहा था किन्तु तुम्हारे कार्यकर्ताओं ने घेरा डाल दिया है।’
‘आप इस कारखाने में—-’
‘मैं इस कारखाने में नौकर नहीं बल्कि यह कारखाना मेरा है, तुम्हारा है। अपनी काल-भैरवी की याद में ही मैंने अपनी कंपनी का नाम के-बी- इंडस्ट्रीज रखा है। इन बीस वर्षों में हमारी कंपनी ने बहुत तरक्की की है। दुनिया के कई देशों में हमारे कारखाने चल रहे हैं। अब मैं यहां अपनों के बीच कारखाना लगाना चाहता हूँ ताकि इस पूरे क्षेत्र का विकास हो सके।’
‘विकास के सपने दिखा-दिखा कर आधे से ज्यादा जंगल हम लोगों से छीने जा चुके हैं। अब मैं हरे-भरे जंगलों को उजाड़ कर कोई और कारखाना नहीं लगने दूंगी’ हिमगंगा के चेहरे पर क्रांतिकारियों जैसे भाव उभर आये।
‘मुझे तुम्हारी हर बात मंजूर है लेकिन जरा सोचो इतने वर्षों में तुमने क्या हासिल किया? क्या इन आदिवासियों की जिंदगी बदल पायी? ये आज भी वैसे ही भूखे और नंगे है जैसे बीस वर्ष पहले थे। अगर ये कारखाना लगता है तो इनके तन पर कपड़ा और पेट में रोटी आ सकती है’ मैंने समझाने की कोशिश की।
‘ओह, तो एक व्यापारी समाजवाद का चेहरा लगाकर हमें खरीदने आया है’ हिमगंगा के होंठ व्यंग्य से टेढ़े हो गये।
‘बहुत व्यापार कर चुका हूँ मैं’ हिमगंगा की बात सुन मै तड़प उठा,’ इस जंगल का कुछ कर्ज है मुझ पर और मैं यह कर्ज उतारने आया हूँ। इस कारखाने में केवल आदिवासी भाइयों को ही रोजगार मिलेगा। अगर तुम कहोगी तो मैं इस कारखाने का पूरा लाभ आदिवासी विकास केन्द्र के नाम कर दूंगा।’
‘तुम पांच हजार करोड़ रूपये का मुनाफा छोड़ दोगे?’ हिमगंगा ने मुझे अविश्वसनीय दृष्टि से देखा।
‘बात कुछ छोड़ने की नहीं बल्कि कुछ करने की है। हमारी तुम्हारी मंजिल एक थी इसीलिये अलग-अलग रास्तों पर चलकर भी हम एक बार फिर मिल गये हैं। हमने एक-दूसरे का साथ निभाने का वादा किया था। आज उस वादे को निभाने का वक्त आ गया है’ मैंने समझाया।
इसी पुस्तक की एक कहानी से —