नरेश शांडिल्य और उसकी ग़ज़लों से मेरी शनासाई पिछले कुछ वर्षों से है, लेकिन बहुत पुरानी लगती है । मैंने जब-जब उसकी गज़लें पढ़ीं या सुनी, कुछ न कुछ-शे’र जरूर जी को लगे ।
नरेश शांडिल्य ग़ज़ल-विधा और उसकी नजाकतों से खूब वाकिफ़ है । यह न केवल विभिन्न बहरों और रदीफ़-काफियों का अच्छा ज्ञान रखता है बल्कि शब्दों का भी मिजाज आश्ना है । वह अपने जज़्बात और अहसासात को अशआर के पेराए में अभिव्यक्त करने का गुर जानता है । उसकी ग़ज़लों से व्यक्ति, समाज और समय हाथ में हाथ लिए साथ-साथ चलते नजर जाते हैं ।
मैं सदियों की प्यास नरेश शांडिल्य की ताजा ग़ज़लों का संकलन है । मुझे यकीन है कि हिन्दी ग़ज़लों के शैदाई इसे मुद्दतों याद रखेंगे ।
-प्रोफेसर सादिक
उर्दू विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय