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कवि ने कहा : विनोद कुमार शुक्ल / Kavi Ne Kaha : Vinod Kumar Shukla (PB)

200.00 160.00

ISBN : 978-93-81467-24-4
Edition: 2024
Pages: 128
Language: Hindi
Format: Paperback


Author : Vinod Kumar Shukla

Category:

Description

कवि ने कहा : विनोद कुमार शुक्ल
यद्यपि कविताओं का चयन मैंने किया है, पर इसका आधार स्पष्ट नहीं है कि इन चुनी हुई कविताओं को बाकी कविताओं में मिला दूं और इन्हें फिर से पूरा चुन लूं । दुबारा चुनते समय कुछ कविताएं जरूर बदल जाएंगी । कूल सत्तावन, इतनी कविताएं हैं । कोई कविता वैसे पूरी नहीं होती पर उसके लिखने का अंत है । कुछ लिखना बचा हुआ प्रत्येक कविता के अंत के साथ रहता है । लिखने के इस छूटे रहने के साथ कविता पूरी होती है । प्रत्येक कविता का लिखना बचा हुआ, अभिव्यक्ति का बचा हुआ भी होता है जो पाठक की समझ से पूरा होता है । एक रचना की पूर्ति अलग-अलग पाठकों में अलग-अलग होती है । मैं दूसरों की कविता पढ़ने के बाद अपने लिए इसी तरह उसमें जगह पाता हूं। इस जगह मैं भटकता हूं। जहाँ पहुंचना था वहां पहुंच गए ऐसा कभी नहीं होता, परंतु भटकने की जगह जानी-पहचानी जरूर हो जाती है । भटकने की जगह का जाना-पहनाना हो जाना अच्छा लगता है, इसलिए भटकना भी । कविता मेरे लिए दुनियादारी है, और लिखना भी ।
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