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कवि ने कहा: हेमन्त कुकरेती / Kavi Ne Kaha : Hemant Kukreti (PB)

140.00 126.00

ISBN : 978-93-85054-60-0
Edition: 2016
Pages: 128
Language: Hindi
Format: Paperback


Author : Hemant Kukreti

Category:

अपनी पीढ़ी के शायद सबसे कलात्मक और उतने ही आसान कवि हेमन्त कुकरेती बीसवीं सदी के लॉन्ग नाइंटीज में उभरी कवि-पीढ़ी से ताल्लुक रखते हैं।
बिना किसी शोरशराबे के अपनी भूमिका निभाने वाले मुक्तिबोध हों या त्रिलोचनµदेर से आलोचकों की तवज्जो पाते हैं। ऐसे कुछ कवि हर दौर में होते हैं। हेमन्त कुकरेती भी ऐसे कवियों में हैं। उन्हें हिंदी पाठकों का जितना स्नेह मिला है_ आलोचकों की कृपादृष्टि से वे उतना ही वंचित रहे हैं। शायद इसका कारण यह भी है कि हेमन्त कुकरेती कुपढ़ और कूढ़मगज़ आलोचकों के बने-बनाए खाँचों में फिट होना तो दूर_ उनके लिए कठिनाइयाँ पैदा करते रहे हैं। हेमन्त कुकरेती ‘लोक के कवि’, ‘नगर के कवि’, ‘पहाड़ के कवि’, ‘पठार के कवि’, ‘समुद्र के कवि’ हों या प्रगतिशील कवि, जनकवि, भारतीय कविµइन सब खानाबद्ध कोष्ठकों से अलग और बेकै़द रहे हैं। झमेले उनके साथ ये रहे कि उन्होंने न बिहार में जन्म लिया, न बनारस में! यहाँ तक कि पठार या पहाड़ भी उन्हें जन्म लेने लायक नहीं लगे! दिल्ली में जन्म लेकर उन्होंने हिंदी कविता के पूर्वी घराना, भोपाल घराना, आई- टी- ओ- घराना, पहाड़ी घरानाµकिसी से भी गंडा-तावीज नहीं बँधवाया। ऐसे में उनके साथ और क्या सलूक किया जाता! फिर भी हिंदी कविता के आस्वादकों को हेमन्त कुकरेती की उपस्थिति आश्वस्ति से भरती है।
सघन एेंद्रिकता और सरल विन्यास को साधने वाले हेमन्त कुकरेती विचारों को बिंब में बदलने वाले हुनर में माहिर उन कवियों में हैं_ जिन्हें अपने शब्दों पर भरोसा है इसलिए उनके शब्दों की अर्थव्याप्ति चकित करने में जाया नहीं होती बल्कि कविता के जादू और पहुँच को और गहराती है।
-कुमार अनुपम

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