बुक्स हिंदी 

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Kankar Se Shankar

350.00 300.00

ISBN : 978-93-93486-93-6
Edition: 2024
Pages: 132
Language: Hindi
Format: Hardcover

Author : Dr. R.P. Mishra, Dr. Arun Kumar Mehto, Dr. Balmiki Kumar

Category:

लोक की हँसी सहने वाले ही लोक निर्माण करते हैं। कोई भी व्यक्ति जब कुछ नया करने को आगे बढ़ता है तो उसे उपहास, उपेक्षा, तिरस्कार और दमन इन चार सीढ़ियों को पार करना पड़ता है और इसके बाद स्वयं सम्मान और सफलता उसके कदम चूमती है। लोग अच्छे कामों को भी संदेह को दृष्टि से देखते हैं और उन पर उँगली उठाते हैं। लेकिन यह भी सच है कि शक सदा सोने की शुद्धता पर ही किया जाता है, कोयले की कालिख पर नहीं। अतः कर्मयोगी आलोचनाओं की परवाह न कर अपनी धुन में आगे बढ़ते जाते हैं और एक दिन आलोचक उनके अनुयायी बनकर पीछे-पीछे चलने लगते हैं। वैसे भी किसी की अनर्गल बयानबाजी और टिप्पणी से घबराने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि हर खेल में दर्शक ही शोर मचाते हैं, खिलाड़ी नहीं। खिलाड़ी तो पूरी लगन और ऊर्जा के साथ अपना प्रदर्शन बेहतर बनाने में लगे रहते हैं। मथुरा जी भी एक ऐसे ही मँजे हुए खिलाड़ी हैं। उनका संदेश है-

ना किसी से ईर्ष्या, ना किसी से होड़,

मेरी अपनी है मंजिल, मेरी अपनी दौड़।

एक इनसान के तौर पर यदि मथुरा जी को परखा जाए तो वे खरा सोना साबित होते हैं। बचपन से लेकर अब तक उन्होंने कभी अनावश्यक बातों की परवाह नहीं की। उन्हें जो उचित लगा उसे करने में उन्हें कभी कोई हिचकिचाहट नहीं हुई। उनका यही मिजाज उनकी तरक्की की वजह बन गया। नेतृत्व के गुण उनमें प्राथमिक शिक्षा के दौरान ही आ गए थे, जो समय के साथ-साथ और निखरते

गए और अंततः वे एक सक्षम नेता के रूप में सामने आ सके। वे दूसरों का तहे दिल से सम्मान करते थे, इसीलिए लोग उनके करीब आते चले गए।

ऐसा भी नहीं कहा जा सकता कि उनसे कोई गलती या भूल हुई ही नहीं है। इनसान तो खूबियों और खामियों का मिश्रण होता है। भूल तो प्राकृतिक या स्वाभाविक प्रक्रिया है। (सड़क कितनी भी साफ हो, धूल तो हो ही जाती है, इनसान कितना भी अच्छा हो भूल तो हो ही जाती है।’

भले ही मथुरा जी को महात्मा गाँधी जैसा उच्चतम मुकाम न हासिल हो पाए, परंतु उनकी कारगुजारियाँ लाजवाब कही जा सकती हें। निस्वार्थ भाव से उन्होंने अपनी जनता की जो सेवा की है, उसकी अन्यत्र मिसाल मिलना मुश्किल है। मामला चाहे शिक्षा का हो या स्वास्थ्य का हो या महिलाओं का हो या रोजगार का हो, हर मोर्चे पर मथुरा जी ने जनहित में कोई कसर नहीं उठा रखी। चुनावी मोर्चे पर शिकस्त झेलने के बाद भी वे कभी अपने कर्मपथ से विचलित नहीं हुए और उतने ही जोश और जज्बे से कार्य करते रहे। निस्संदेह मथुरा जी जैसे इनसान और उच्चकोटि के नेता विरले ही होते हैं। अगर देश के समस्त नेता मथुरा जी की तरह सच्चे कर्मयोगी हो जाएँ तो भारत दुनिया में अव्वल नंबर पर पहुँच जाए। बहरहाल, जहाँ तक बात मथुरा जी की है तो उनकी महान राजनीतिक यात्रा बदस्तूर जारी है और झारखंड को उनसे तमाम उम्मीदें हैं।