स्वयं प्रकाश ठेठ प्रेमचंदीय धारा के कहानीकार नहीं हैं, बल्कि वे हिंदी कहानी में नई कहानी के साथ ही आए उस धारा के कहानीकारों में से हैं, जिन्हें हम सुविधा के लिए मुक्तिबोध द्वारा चिह्नित निम्न मध्यवर्गीय सामाजिक आधार के साथ जोड़ सकते हैं। आम तौर पर इन कहानीकारों पर तत्कालीन शिल्प संबंधी तथाकथित प्रयोगों की छाया भी है, जो एक हद तक यथार्थ के प्रस्तुतीकरण में अतिरिक्त कलात्मकता के आग्रह के चलते इन्हें सीमाबद्ध करती है, लेकिन इन कहानियों को देखने के बाद पूरे विश्वास के साथ कहा जा सकता है कि स्वयं प्रकाश इन सीमाओं के प्रति सबसे अधिक सजग हैं और उन्हें तोड़ने की बेचैनी भी उनमें सबसे अधिक है। इस माने में वे इस धारा के भीतर अपवाद की तरह रहे हैं, लेकिन रहे हैं उसके भीतर ही। जहाँ यथार्थ के दबाव ने शिल्प की सजगता को तोड़ दिया, वहाँ आप चाहें भी तो कला की बात करना अपराध जैसा लगेगा। असल में तो शिल्प की सबसे बड़ी सफलता भी यही होती है कि वह दिखाई न पड़े, पाठक को सीधे कथ्य की ऊभ-चूभ में ढकेल दे। आर्नल्ड हाउजर ने रूपक बनाते हुए कहा कि खिड़की की सार्थकता बाहर का दृश्य दिखाने में होती है, अपनी ख़ूबसूरती प्रस्तुत करने में नहीं। ज्यादातर कहानियों में यथार्थ का यह दबाव मौजूद है, लेकिन कुछेक कहानियों में शैली ने कथ्य के सीधे संप्रेषण में बाधा भी पहुँचाई है।
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Ek Khoobsurat Ghar
₹500.00 ₹400.00
ISBN: 978-93-93486-23-3
Edition: 2023
Pages: 246
Language: Hindi
Format: Hardbound
Author : Swayam Prakash
Categories: New Release, Stories
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