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Janhit Tatha Anya Kavitayen

85.00 72.25

ISBN: 978-81-88118-01-4
Edition: 2002
Pages: 88
Language: Hindi
Format: Hardback


Author : Hira Lal Bachhotia

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Category:
जनहित तथा अन्य कविताएँ
हीरालाल बाछोतिया की कविताओं में आज के मनुष्य की जिजीविषा, करुणा एवं मनस्ताप अभिव्यक्त हुआ है । कविताओं में एक ताजगी है, अन्य समकालीनों से अलगाव, जिसे है कवि का एक आवश्यक गुण मानता है । अपने परिवेश, अपनी धरती और अपनी आंतरिक अन्विति इन कविताओं में सजीव रूप में ध्वनित हुई है ।
इस संग्रह की कविताएँ चार खंडों में विभाजित हैं । इन चारों खंडों में वैविध्य भी है और एक आंतरिक सामंजस्य भी । जो विशेष बात इन तमाम कविताओं में दिखाई दी, वह है मनुष्य के संताप को दूर करने के लिए कविता के द्वारा अक्रिय प्रयास । इसे मैं मानव-मुक्ति को कविता कह सकता हूँ ।
इस संग्रह में कहीं-कहीं प्रकृति के अछूते बिंब है और ऐसा लगता है कि महानगर के विषाक्त वातावरण में रहकर भी कवि अपने अतीत को और अपने आत्मीय क्षणों को भूल नहीं पाया है । किंतु यह अतीतजीवी होना नहीं, नित नवीन की और अग्रसर होते हुए अपनी स्मृतियों को भी सहेजकर रखने जैसा है ।
हिंदी पाठकों को ये कविताएँ आकृष्ट भी करेंगी और एक नई काव्य-संवेदना से भी उनका साक्षात्कार होगा ।
-जगदीश चतुर्वेदी
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