महापंडित राहुल सांकृत्यायन के बाद संस्कृति पर लेखन और यात्रा-वृत्तांत जैसे साहित्य की धीरे-धीरे कमी होती गई। बहुत ही कम ऐसे साहित्यकार रहे, जिन्होंने आसपास की संस्कृति पर कलम चलाई। ऐसे बिरले साहित्यकारों में सुदर्शन वशिष्ठ एक ऐसा नाम है, जिसने सशक्त कथाकार और कवि होने के साथ-साथ संस्कृति-लेखन में भी बराबर पैठ बनाए रखी। आठवें दशक के आरंभ से लेकर इनके सांस्कृतिक लेख सामने आते रहे। धर्मयुग, साप्ताहिक हिंदुस्तान, कादम्बिनी, संस्कृति, योजना जैसी पत्रिकाओं तथा सभी समाचार-पत्रों के सांस्कृतिक पृष्ठों में ये बराबर लिखते रहे। कुल्लू के मलाणा गणतंत्र को यही सबसे पहले सामने लाए। धर्मयुग के फागुन अंक में फागुन में मलाणा लेख छपा।
‘आँखिन देखी’ और उसका कथात्मक शैली में वर्णन वशिष्ठ के संस्कृति-लेखन की विशिष्टता रही है। पढ़ते हुए ऐसी लगता है, आप यह उत्सव स्वयं देख रहे हैं। सरल और स्पष्ट भाषा में रोचकता के साथ संस्कृति के गंभीर पहलुओं का विश्लेषण, उनकी वैज्ञानिक व्याख्या, पुरातन को आधुनिकता के साथ जोड़ना इनकी लेखनी की विशेषता रही है।
संस्कृति का कोई ऐसा पहलू अछूता नहीं रहा है, जिस पर वशिष्ठ ने लेखनी न चलाई हो। इतिहास और परंपरा, धर्म और संस्कृति, मंदिर और पुरातत्त्व, मेले और उत्सव, लोक-परंपरा और लोक-वार्ता कोई पक्ष ऐसा नहीं है, जो अछूता रहा हो। लेखक की यायावर प्रवृत्ति ने हिमाचल के दूरस्थ क्षेत्रों की यात्राएँ कीं।
यदि इनके अभी तक प्रकाशित हजारों लेखों और दर्जनों पुस्तकों को देखा जाए तो इन्हें दूसरा राहुल कहा जा सकता है। राहुल जी ने बहुत जगह पूरे के पूरे गजेटियर उतार डाले। वशिष्ठ ने ऐसा नहीं किया। इन्होंने संस्कृति को बहुत बरीब से देखा। जो देखा, वह लिखा। संस्कृति को निष्पक्ष नजरिए से देखा, परखा, समझा है और फिर लेखनीबद्ध किया है। आशा है, यह संस्कृति शृंखला पाठकों, शोधकर्ताओं के लिए उपयोगी सिद्ध होगी।
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Himalaya Gaatha (1) Dev Parampara
₹550.00 ₹495.00
ISBN: 978-81-904232-0-5
Edition: 2023
Pages: 360
Language: Hindi
Format: Hardback
Author : Sudarshan Vashisth
Category: History
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