Description
इस साल वह अपने कुछ बच्चों को पांचवीं बोर्ड की परीक्षा दिलवा रही थी। जी-जान से उनकी तैयारी करवा रही थी। उसने उन बच्चों के मां-बाप को भी ताकीद कर दी थी कि वे बच्चों को घर के काम से न लादें। कम से कम 3-4 महीने उन्हें जम कर पढ़ाई करने दें। जिनके घर में सुविधा नहीं थी, उन्हें वह सुबह-शाम अपने बरामदे में बिठा लेती थी।
अब वह महज एक स्कूल नहीं था, एक सपना था जो वह संजो रही थी। अनचाहे ही वह उसके जीवन का अहम हिस्सा बन गया था। इसीलिए ट्रांसफर की बात सुनते ही उसके मुंह से अनायास ही निकल पड़ा-फिर मेरे स्कूल का क्या होगा?
-इसी संग्रह से
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