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Bhitti / भित्ति

995.00 795.00

ISBN:978-93-93486-12-7
Edition: 2022
Pages: 496
Language: Hindi
Format: Paperback

Author : S. L. Bhyrappa

Category:

डॉ- एस-एल-भैरप्पा
(जन्म: 1934)
पेशे से प्राध्यापक होते हुए भी, प्रवृत्ति से साहित्यकार बने रहने वाले भैरप्पा ऐसी गरीबी से उभरकर आए हैं जिसकी कल्पना तक कर पाना कठिन है। आपका जीवन सचमुच ही संघर्ष का जीवन रहा। हुब्बल्लि के काडसिद्धेश्वर कॉलेज में अध्यापक की हैसियत से कैरियर शुरू करके आपने आगे चलकर गुजरात के सरदार पटेल विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के एन-सी-ई-आर-टी- तथा मैसूर के प्रादेशिक शिक्षा कॉलेज में सेवा की है। अवकाश ग्रहण करने के बाद आप मैसूर में रहते हैं।
‘धर्मश्री’ (1961) से लेकर ‘उत्तर कांड’ (2020) तक आपके द्वारा रचे गए उपन्यासों की संख्या 23 है। उपन्यास से उपन्यास तक रचनारत रहने वाले भैरप्पा जी ने भारतीय उपन्यासकारों में अपना एक विशिष्ट स्थान बना लिया है। रवीन्द्र, बंकिमचंद्र, शरत्चंद्र और प्रेमचंद के बाद किसी ने यदि अखिल भारतीय मनीषा और अस्मिता को शब्दांकित किया है, तो वह भैरप्पा जी ही हैं। आपकी सर्जनात्मकता, तत्त्वशास्त्रीय विद्वत्ता, अध्ययन-श्रद्धा और जिज्ञासु प्रवृत्ति-इन सबने साहित्य के क्षेत्र में आपको अनन्य बना दिया है। आपके अनेक उपन्यास बड़े और छोटे स्क्रीन को भी अलंकृत कर चुके हैं।
पद्मश्री पुरस्कार, सरस्वती सम्मान पुरस्कार, केंद्रीय साहित्य अकादेमी, राज्य साहित्य अकादेमी, असम साहित्य अकादेमी आदि अन्य प्रांतीय भाषा अकादेमियों के पुरस्कार, केंद्रीय साहित्य अकादेमी फैलोशिप, भारतीय विज्ञान संस्थान (प्दकपंद प्देजपजनजम वि ैबपमदबम) का फैलोशिप, मंगलूर में संपन्न इंडियन लिटरेरी फेस्ट पुरस्कार, दीनानाथ मंगेशकर साहित्य पुरस्कार (मराठी), सरस्वती चंद्र पुरस्कार (गुजराती), कन्नड़ के सभी प्रतिष्ठित पुरस्कार-यानी आदिकवि पंप पुरस्कार, कवि चक्रवर्ती नृपतुंग पुरस्कार, ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता मास्ति वेंकटेश अÕयंगार और शिवराम कारंत जी के नाम पर स्थापित पुरस्कार, सत्यकाम पुरस्कार आदि आपको प्राप्त हुए हैं।
राष्ट्रीय प्राध्यापकत्व के सम्मान से भी आप अलंकृत हुए हैं। संस्कृत, उर्दू तथा अन्य सभी प्रतिष्ठित भारतीय भाषाओं में आपके ज्यादातर उपन्यास अनूदित हुए हैं। अंग्रेजी में भी अब तक आपके आठ उपन्यासों के अनुवाद प्रकाशित हुए हैं।
‘पर्व’ महाभारत के प्रति आपके आधुनिक दृष्टिकोण का फल है, तो ‘तंतु’ आधुनिक भारत के प्रति आपकी व्याख्या का प्रतीक। ‘सार्थ’ में जहाँ शंकराचार्य जी के समय के भारत की पुनर्सृष्टि का प्रयास किया गया है, वहीं ‘मंद्र’ में संगीत लोक के विभिन्न आयामों को समर्थ रूप में प्रस्तुत किया गया है। ‘आवरण’ मध्यकालीन भारत का सही चित्रण प्रस्तुत करने वाला उपन्यास है। ‘द्विधा’ महिला आंदोलन के अलग ही आयाम को प्रस्तुत करता है। ‘यान’ तो सही अर्थ में वैज्ञानिक उपन्यास माना गया है। आपकी कोई ऐसी रचना नहीं है (आलोचनात्मक ग्रंथों को भी मिलाकर) जिसको कई पुनर्मुद्रण का भाग्य न मिला हो। ‘आवरण’ के तो छप्पन पुनर्मुद्रण हुए हैं। आपकी रचनाओं से संबंधित 35 से अधिक आलोचनात्मक ग्रंथ प्रकाशित हुए हैं। हिंदी में आपके बीस उपन्यासों को प्रकाशित करने का श्रेय मिला है ‘किताबघर प्रकाशन’ को।
राष्ट्र के अन्यान्य विश्वविद्यालयों तथा शैक्षिक संस्थानों में आपके उपन्यासों से संबंधित एम-फिल- और पीएच-डी- अनुसंधान हुए हैं और हो रहे हैं। राष्ट्रीय स्तर की कई संगोष्ठियाँ भी आयोजित हुई हैं और हो रही हैं। इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं है कि राज्य के छह प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों से आपको मानद डाक्टरेट की उपाधियाँ मिली हैं और कन्नड़ तथा मराठी साहित्य सम्मेलनों की और विदेशी साहित्य सम्मेलनों की अध्यक्षता का गौरव भी मिला है।
आपके बहुचर्चित उपन्यास ‘वंश वृक्ष’ के प्रकाशन की पचासवीं वर्षगाँठ और ‘पर्व’ के प्रकाशन की चालीसवीं वर्षगाँठ मनाई गई जो बिरले स्वरूप की घटनाएँ हैं। आपकी रचनाओं से संबंधित अखिल भारतीय साहित्योत्सव भी मनाए गए हैं जिसमें राष्ट्र के नामी साहित्यकार और आलोचक भाग ले चुके हैं।

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