Description
कॉलेज में रक्षाबंधन की छुट्टी थी। अनुराधा सुबह-सुबह ही तैयार होकर निकल गई। मैं उसे फाटक तक पहुँचाने गई। हरसिंगार के पेड़ के नीचे खड़ी थी। जमीन पर बिखरे फूल महक रहे थे। मुझसे रहा नहीं गया। मैंने फूल बीनकर अपने दुपट्टे के एक कोने में रखने शुरू कर दिए कि तभी एक मोटरसाइकिल बराबर में आकर रुक गई। मैंने मुड़कर देखा, अनुराधा के राजू भैया थे।
फ्क्यों भई, किसके लिए फूल बीन रही हो?य्
मन में तो आया कह दूँ ‘आपके लिए।’ पर जबान नहीं खुली।
फ्अनुराधा को लेने आया था। आज रक्षाबंधन है। बुआ जी के यहाँ उसे मैं ही पहुँचा दूँगा।य्
फ्पर वह तो अभी-अभी वहीं चली गई।य्
फ्मैंने तो उससे कहा था कि मैं आऊँगा! बड़ी बेवकूप़फ़ है।य्
फ्भूल गई होगी।य्
फ्तुम्हारा क्या प्रोग्राम है? तुम भी उसके साथ क्यों नहीं चली गईं? रक्षाबंधन में सब लड़कियाँ बहनें और सब लड़के उनके भैया,य् और वह हँसने लगे।
फ्क्या मतलब?य्
फ्मेरा कोई मतलब नहीं था। तुम चलो तो मैं तुम्हें भी अनुराधा की बुआ के यहाँ ले चलता हूँ।य्
फ्नहीं, मुझे पढ़ाई करनी है। यहीं रहूँगी।य्
-इसी उपन्यास से
Reviews
There are no reviews yet.