Description
—चित्रगुप्त ने विस्तार से समस्या बताई तो नारद उछल पड़े। उनको कुछ याद आया। कहने लगे ओहो, तो यह बात है। पिछले हफ्रते धरती पर जितने लोग क्लोज हुए उनमें से सबकी आत्मा आ गई, किसी भोलाराम की मिसिंग है। अच्छा-अच्छा। तुमको भी ध्यान आएगा, कुछ दशक पहले किसी और भोलाराम का जीव धरती पर ऽो गया था। तब भी मैं गया था और मैंने उसे एक फाइल में ऽोज निकाला था। —आज फिर भोलाराम का जीव ऽोजने जाना होगा!
चित्रगुप्त ने कहा, जी बिलकुल। नारद चिंतित हुए। ठीक है, मैं चला जाऊंगा। मगर मान्यता तो यह है कि आत्मा में परमात्मा का वास होता है। तो क्या परमात्मा भी ऐसा कर सकता है? चित्रगुप्त ने हौले से चारों ओर देऽा। अरे सर, काहे का परमात्मा का वास। परमात्मा को अपने झंझट से फुरसत नहीं। ऐसे मौसम में वे जाएंगे आत्मा की मेहमानी करने! लोगों को यही सब कहके बहलाया जाता रहा है। लोकतंत्र में लोक का वास—साहित्य में सहित का वास—राजनीति में नीति का वास—आत्मा में परमात्मा का वास! —लेकिन मेरे लिए सिरदर्द है। भोलाराम की आत्मा न जाने कहां मौज कर रही है, मैं यहां परमात्मा हुआ जा रहा हूं।
नारद ने सिर हिलाया। हूं, तो मुझे जाना ही होगा। मगर कुछ पता-पहचान तो दो। कंप्यूटर पर फोटो और बायोडाटा दिऽा दो। —चित्रगुप्त ने कंप्यूटर स्क्रीन नारद की ओर घुमाई। नारद फुसफुसाए। फिर संवाद होने लगाµ
µइसी पुस्तक से
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