मस्तिष्क का पिटारा खाली हो चुका था। बच्चों की पत्रिकाओं और किताबों से पढ़कर भी कई कहानियाँ उसे सुना चुका था। हर रात सोने से पहले कहानी सुनना ‘तारक’ का नियम था। सच कहूं तो कहानी सुनाए बिना मुझे भी चैन नहीं पड़ता था। कहानी सुनते हुए जितना मजा उसे आता था, उसके चेहरे के हाव-भाव और कौतूहल-भरी आंखें देखकर उससे भी अधिक सुख मुझे मिलता था। उस दिन कोई नई कहानी याद नहीं आ रही थी, सो मैंने उससे कहा, ‘कोई पुरानी कहानी सुना दूं?’ मैंने कभी-कभी ऐसी कहानियां सुनाकर उसे बहला दिया करता था, जो मैं उसे पहले कभी सुना चुका था। अकसर वह सुनी हुई कहानी दोबारा सुनने के लिए राजी हो जाता था, पर उस दिन वह नहीं माना। ‘एक ही कहानी को बार-बार चुनने में कोई मजा आता है?’ वह मुंह सुजाकर बैठ गया। मैंने बहुत समझाया पर वह जि पर अड़ रहा। मेरा बड़ा बेटा ‘आकाश’ भी वहां बैठा था। उसने कहा, ‘आप इसे वही कहानी सुना दो न, जो आपने एक बारे मुझे सुनाई थी-क्रिकेट वाली।’
-प्रस्तावना से