ज्ञानेश्वर मराठी संत-साहित्य के शिरोमणि थे। वह एक अलौकिक विभूति थे। उनका स्मरण कर आज भी प्रत्येक मराठीभाषी अपने को धन्य मानता है। इसका कारण यह है कि ज्ञानेश्वर ने अपनी ‘ज्ञानेश्वरी’, जो कि ‘श्रीमद्भगवद्गीता’ की मराठी में की गई टीका है, के द्वारा महाराष्ट्र के जनमानस को सच्च भागवत धर्म का मंत्र दिया। उनकी ‘ज्ञानेश्वरी’ इस संसार-सागर के पार उतारने वाली पवित्र-नौका बन गई। ज्ञानेश्वर ने बहुत थोड़ी सी आयु में ज्ञान और भक्ति की एकता सिद्ध करके एक ऐसी अमिट छाप छोटी कि वह आज सैकड़ों वर्ष बाद भी उसी तरह से मानव-हृदय को झंकृत कर रही है।
-इसी पुस्तक से