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विराम चिन्ह: क्यों और कैसे?
यह एक विडंबना ही कही जाएगी कि हिंदी भाषा दुनिया की सभी भाषाओं में सर्वाधिक व्यवस्थित एवं वैज्ञानिक होने के बावजूद इसके प्रयोग में आज पत्रा-पत्रिकाओं में जिस प्रकार लापरवाही बरती जाती है और स्कूलों में करोड़ों बच्चों को व्याकरण एवं विराम चिद्दों के प्रयोग के संबंध में जिस प्रकार विधिवत् शिक्षा नहीं दी जाती है, वह हिंदी के भविष्य की दृष्टि से चिंता का विषय है। केवल बच्चों की बात ही नहीं, हिंदी में एमॉएॉ और शोध करने वाले अधिकांश लोग भी न तो ठीक से हिंदी लिख पाते हैं और न विराम चिद्दों का सही प्रयोग कर पाते हैं।
विराम चिद्द किसी भी रचना-यात्रा के छोटे-मोटे पड़ाव हैं, जो उसके अर्थ एवं उद्देश्य को स्पष्ट करने में महत्त्वपूर्ण योगदान करते हैं। विराम चिद्दों को भाषा का ‘नट-बोल्ट’ भी कहा जाता है। जिस प्रकार किसी मशीन में किसी स्थान पर सही नट- बोल्ट नहीं लगने से उसका संचालन गड़बड़ हो जाता है या मशीन रुक जाती है, उसी प्रकार किसी वाक्य-समूह में सही विराम चिद्दों का प्रयोग नहीं किए जाने से उसका अर्थ स्पष्ट नहीं हो पाता या गलत अर्थ व्यक्त होता है। विराम चिद्दों के नट-बोल्ट के सही प्रयोग के बिना अच्छी-से-अच्छी भाषा भी लड़खड़ाकर गिर पड़ेगी। वस्तुतः आप पूर्ण विराम, अर्ध विराम, अल्प विराम आदि का गलत प्रयोग करते हैं तो आप अपने विचार सही रूप में व्यक्त नहीं कर पाते हैं।
छात्रों, अध्यापकों, प्राध्यापकों, लेखकों और पत्राकारों के साथ ही पाठकों के लिए भी समान रूप से उपयोगी इस पुस्तक में विस्तार से विचार करते हुए प्रतिष्ठित लेखकों की पुस्तकों एवं पत्रा-पत्रिकाओं में छपी पुस्तकों से उद्धरण देकर विराम चिद्दों की उपयोगिता एवं सही प्रयोग पर विचार किया गया है।
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